सरकार को भी न्याय में देरी
मधुरेश, पटना
08/06/10 | Comments [0]
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यह सरकार की पीड़ा है। उसे भी समय पर न्याय नहीं मिल रहा। इसकी टकटकी में वह भी वर्षो गुजरता है। बिहार सरकार का खजाना लूटा गया। वह 14 साल से लुटेरों की अंतिम सजा के इंतजार में है। ऐसा कब होगा-कोई बताने की स्थिति में नहीं है। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके लाल ने चारा घोटाला के मामले (आरसी 20 ए/96) की सुनवाई करते हुए एक दिन खीझ कर कहा था-इस मुकदमे को विशेष अदालत से निपटाने में कम-से-कम पांच हजार कार्य दिवस लगेंगे। देश के इस बहुचर्चित घोटाले में अब तक की स्थिति श्री लाल के इस अनुमान की संपुष्टि है। और इसी के चलते जब-तब ऐसे सवाल भी पूछे जाते हैं कि क्या चारा घोटाला के आरोपी अंतिम सजा पाये बिना दुनिया से गुजर जायेंगे कि आरोपियों के नाती-पोतों से 950 करोड़ की लूट की राशि वसूली जायेगी? इस मामले ने दुनिया को चौंकाया था, देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई जांच में जुटी थी। बेशक, इस मामले के 1064 आरोपियों में से कुछ को सजाएं मिलीं हैं। मगर ये निचली अदालत की सजाएं हैं। 1996 से अब तक किसी भी मुकदमे में अंतिम सजा की स्थिति नहीं बनी है। दरअसल, देश और राज्य केनामी वकीलों के दिमाग और मामले को लंबा खिंचने की कानूनी गुंजाइश ने इसे शह और मात का बेजोड़ खेल बना दिया, जिसके अधिकांश स्तर बाकायदा सरकार हारती रही। खजाना उसी का लूटा गया है। केस स्टडी के रूप में लालू प्रसाद और उनकी पत्‍‌नी राबड़ी देवी के खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा (5 डीए/98) यह सब कुछ स्पष्ट देता है। पटना हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार इस मुकदमे को छह महीने में निपट जाना था। मुकदमा,19 अगस्त 1998 को हुआ। पर निचली अदालत से फैसला आने में आठ वर्ष लग गये। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश मुनिलाल पासवान ने 18 दिसम्बर 2006 को इस मुकदमे से लालू-राबड़ी को बरी कर दिया। मगर पेंच यहीं खत्म न हुआ। उम्मीद के खिलाफ जब सीबीआई इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट नहीं गयी, तब राज्य सरकार ने 18 फरवरी 2008 को यह काम किया। सीबीआई एसपी वीएस कौमुदी ने बीएन खड़कवाल की जांच रिपोर्ट पर 42 लाख 52 हजार 193 रुपये का मुकदमा दर्ज कराया था। हर स्तर पर कानूनी दांवपेंच चला। गवाहों की संख्या तक पर विवाद। गवाही, लंबी तारीखें,स्थगित सुनवाई .., नमूनों की कमी नहीं है। चार न्यायाधीश बदल गये। कुछ विवादों के दायरे में लाये गये। एकाध का मसला तो सुप्रीम कोर्ट तक गया। लालू-राबड़ी ने इस मुकदमे के अस्तित्व को ही चुनौती दे रखी थी। बहरहाल, शेष मामलों से भी जुड़े ऐसे थोक नमूने हैं। स्पष्टतया इनके सुप्रीम कोर्ट तक से सजा की स्थिति पहुंचने में बहुत समय लगेगा। आरोपी मौज में हैं। उनके पास संपत्ति है। वे इससे अपना बचाव कर रहे हैं।


  

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