न्याय का मंदिर: पटना हाईकोर्ट
पटना कार्यालय
08/05/10 | Comments [0]
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22 मार्च 1912 को भारत के गवर्नर जनरल की घोषणा के बाद बिहार और उड़ीसा के क्षेत्र जो पूर्व में बंगाल की प्रेसीडेंसी फोर्ट विलियम में शामिल थे, को अलग-अलग प्रांत की स्वतंत्र पहचान दी गई। इसके साथ ही लेटर्स पेटेंट द्वारा 9 फरवरी 1916 को पटना हाईकोर्ट अस्तित्व में आया। इसकी एक सर्किट सिटिंग कटक में भी स्थापित की गई। 26 फरवरी 1916 को गजट आफ इंडिया में उक्त लेटर्स आफ पेटेंट का प्रकाशन किया गया। इस प्रकाशित सूचना में कहा गया था कि बंगाल के हाईकोर्ट आफ ज्यूडीकेचर एट फोर्ट विलियम से सिविल, क्रिमिनल, नौसेना विभाग, वैवाहिक मामले, वसीयत एवं निर्वसीयत के मामले और नामांकन मामलों को लेकर हाईकोर्ट आफ ज्युडीकेचर एट पटना के न्याय क्षेत्राधिकार में दिया जा रहा है। इस तरह प्राचीन पाटलीपुत्र शहर का एक अपना हाईकोर्ट 1916 में स्थापित हुआ। इसके पहले मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड मेनार्ड डेस चैम्प्स के चैमियर थे। हाईकोर्ट भवन की आधारशिला एक दिसबंर 1913, दिन सोमवार को तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिग ने रखी थी। निर्माण पूरा होने पर 3 फरवरी 1916 दिन गुरुवार को पटना हाईकोर्ट का शुभारंभ भी इन्हीं के हाथों किया गया था।
वास्तव में हाईकोर्ट ने अपना कामकाज एक मार्च 1916 से शुरू किया। इस दिन माननीय जजों ने पूरी अदालती वेशभूषा धारण कर रखी थी। सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में सभी जज पहुचे और बिना हत्थे वाली कुर्सियों पर आसीन हुए। इन जजों के पीछे वाली कतार में कोर्ट के रजिस्ट्रार, मंडलायुक्त, कमिश्नर आफ एक्साइज एंड रजिस्ट्रेशन और कुछ स्थानीय उच्च अधिकारी बैठे हुए थे। बार की ओर से मौलाना
मजहरुल हक ने जजों का स्वागत किया। इसके बाद माननीय मुख्य न्यायाधीश ने हाईकोर्ट की स्थापना की घोषणा की।
1916 में पटना हाईकोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश और छह कनिष्ठ जजों के साथ कामकाज शुरू किया। 1947 में इसकी स्वीकृत क्षमता नौ स्थायी और तीन अतिरिक्त जजों की थी। 1937 में उड़ीसा इस क्षेत्र से अलग होकर एक नया राज्य बना। जिसके चलते 26 जुलाई 1948  को उड़ीसा हाईकोर्ट की स्थापना की गई। फरवरी 1950 में अतिरिक्त तीन जजों के पद को स्थायी किया गया। सितंबर 1952 में 13वें और जनवरी 1956 में 14वें स्थायी जज के पद को स्वीकृति मिली। जुलाई 1957 से समय समय पर चार अन्य अतिरिक्त जजों के पदों की भी स्वीकृति मिली। 1965 में पटना हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश समेत कुल 14 स्थायी जज और तीन अतिरिक्त जज थे।


  

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