  सरकार का सर्वे बताता है कि कर्जदारों पर बैंक और वित्तीय संस्थाओं का 1,20,000 करोड़ रुपये बकाया हैं और ये देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल रहा है। फंसे कर्ज (एनपीए) और बकाया की जल्द वसूली के लिए विशेष कानून बने, अत्यधिक अधिकार वाला ट्रिब्यूनल स्थापित हुआ, लेकिन सब बेकार। वहां भी सामान्य अदालतों की तरह मुकदमों का ढेर लग गया है।    कर्जदार और पैरोकार मामले को लटकाने की हर संभव कोशिश करते हैं। उस पर सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया ट्रिब्यूनल में मामलों का निस्तारण लटकाने में योगदान दे रही है। ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के फंसे कर्ज की रिकवरी के लटके मामलों पर चिंता जताते हुए की हैं। रिकवरी के मामलों में उच्च न्यायालयों को रिट याचिका में रोक आदेश पारित करने से परहेज करने की नसीहत देते हुए कोर्ट ने फिर स्पष्ट किया कि जरूरी नहीं कि बैंक या वित्तीय संस्थान कर्ज वसूली के लिए पहले कर्जदार के खिलाफ कार्रवाई करें। वे पहले गारंटर पर भी कार्रवाई कर सकते हैं। यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी व न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया है। पीठ ने रिकवरी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाले हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को रद कर दिया है।    कोर्ट ने फंसे कर्ज की रिकवरी के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों विभिन्न कमेटियों के सुझावों और नए कानूनों का जिक्र करते हुए कहा कि यह सब जल्द रिकवरी के लिए किया गया ताकि सामान्य अदालतों के दखल के बिना बकाया वापस पाया जा सके। मामला इलाहाबाद का है, जहां मेसर्स पवन कलर लैब ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया से 22.50 लाख रुपये कर्ज लिया था।    इलाहाबाद का सदर स्थित अपना मकान बैंक के पास मॉर्गेज कर इस कर्ज की गारंटी सत्यवती टंडन ने दी थी। कर्ज अदा नहीं हुआ तो बैंक ने सत्यवती के खिलाफ रिकवरी कार्यवाही शुरू की, लेकिन हाईकोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक लगा दी। उसका मानना था कि गारंटर से पहले मूल कर्जदार पर कार्रवाई होनी चाहिए। इसके खिलाफ बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
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