न्याय की आस में सलाखों के पीछे जीवन बिता रहीं दर्जनों विचाराधीन 'अपराधिणी'
संजय पांडेय, इलाहाबाद
08/04/10 | Comments [0]
Change font size:A | A

Comment

Rating

Bookmark

''ठीक है कि हम पर आरोप है। इसलिए हम जेल में बंद हैं, लेकिन यदि कल हम बाइज्जत बरी कर दिये गए तो? तब इन सलाखों के भीतर गुजारे गए 18 महीनों का मुआवजा कौन देगा? मेरे साथ मेरी बच्ची भी इसी चहारदीवारी के बीच रह रही है। उसके बचपन का मुआवजा कौन देगा?'
यह वो सवाल है जिसका उपाय फिलहाल न्याय व्यवस्था के पास तो नहीं है। इसीलिए विधिक क्षेत्र के धुरंधर भी इससे कतराकर निकल जाते हैं। इस पर विचार भी इसलिए नहीं किया जाता कि इस नजरिये से सोचने पर पुलिसिया सिस्टम कमजोर पड़ता है। हालांकि कानून की इस खामी का खामियाजा पुरुषों ही नहीं, महिला बंदियों को भी चुकाना पड़ता है। नैनी जेल का ही उदाहरण लें। इस समय यहां 77 महिला कैदी विचाराधीन बंदी के रूप में हैं और अपने अनिश्चित इन्तजार के साथ एक-एक दिन काट रही हैं। उनके साथ दो दर्जन से अधिक मासूम भी ममता की छांव के बदले सलाखों के पीछे हैं।
नैनी कारागार की महिला बैरक में इन दिनों 112 बंदी हैं। इनमें 77 विचाराधीन हैं जिनके मामलों की अभी सुनवाई चल रही है। विचाराधीन बंदियों में करीब चालीस तो एक वर्ष से अधिक समय से जेल में हैं जबकि चार को यहां आये दो वर्ष से अधिक वक्त बीत चुका है। इनमें दो हत्या जबकि दो दहेज हत्या के मामले से संबंधित हैं। पिछले माह तक इसी प्रकार इलाहाबाद मंडल की फतेहपुर जेल में 32, वाराणसी में 66, प्रतापगढ़ में 24, बांदा में 12, हमीरपुर में 7 और महोबा में 5 विचाराधीन महिला बंदी निरुद्ध थीं। मंडल की बारह जेलों में यह आंकड़ा तीन सौ के करीब है।
यहां हत्या के एक मामले में बंद सरायममरेज की चंद्रकला को ही लें। उसे जेल में आये करीब तीन वर्ष हो चुके हैं। आज जब परिजन उससे मिलने आते हैं तो उसकी आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं लेते। हत्या के ही मामले में बंद बारा की रेवती भी दीवार की ईटों को गिनकर एक-एक दिन गुजार रही है। उसे लगता है कि शायद उसके मामले का फैसला होने तक तक  ईटें भी कम न पड़ जाएं। तस्करी के एक  मामले में बंद रफीदा को आज भी उम्मीद है कि वह सलाखों से मुक्त होकर अपने परिवार से जल्द मिलेगी लेकिन कब, यह शायद उसे भी मालूम नहीं। जेल में ही जन्मे अपने मासूम बच्चे की परवरिश और उसकी भावी जिंदगी के सवाल उसका दिल बैठा देते हैं। कई बंदियों को तो भरोसा है कि वे अदालत से निश्चित रूप से छूट जाएंगी। कुछ आरोप लगाती हैं कि पुलिस ने उन्हें बेवजह फंसाया है। ऐसे में यदि उन्हें अदालत बरी भी कर देती है तो जेल में बिताई गई अवधि का मुआवजा कौन देगा, इस सवाल का जबाव अंधेरे में है। 


  

Print

E-mail

Save
Post Comments