 इसमें कोई दो राय नहीं कि आम वर्ग को शीघ्र व सस्ता न्याय मिलना चाहिए। शीघ्र न्याय के लिए आवश्यक है कि न्यायाधीशों की संख्या हर स्थान की आवश्यकता के मुताबिक समय समय पर बढ़ाई जानी चाहिए व न्यायिक प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।। जहां तक सस्ता व सुलभ न्याय देने की बात है तो इसके लिए अधिवक्ताओं व सरकार को पहल करनी पड़ेगी। साथ ही अधिवक्ताओं को भी संबंधित पार्टी से उसकी हैसियत के अनुसार ही शुल्क लेना चाहिए व गरीबों को न्याय मुफ्त में उपलब्ध करवाना चाहिए। अक्सर यह भी देखने में आया है कि सरकार समय समय पर कोर्ट फीस में बढ़ोतरी करती रही है जो सही नहीं है व इसका सीधा असर आम वर्ग पर पड़ता है। कोर्ट फीस को कभी भी आमदनी का साधन नहीं बनाया जाना चाहिए। इससे आम वर्ग अक्सर न्याय पाने से वंचित रह जाते हैं। जहां तक लंबित मामलों की बात है तो इसके अनेक प्रमुख कारण है। न्यायालयों में न्यायाधीशों व स्टाफ की कमी तो है ही साथ ही सरकारी वकीलों की कमी रहती है जिस  वजह से उन्हें एक से च्यादा अदालतों में हाजिरी लगानी पड़ती है। इसके अलावा गवाहों को अदालत का नोटिस न मिलना व अन्य कारण शामिल हैं। जब सुविधाएं बेहतर होंगी तभी न्याय भी बेहतर मिलेगा। देश में न्यायालयों के लिए बजट का आवंटन भी पर्याप्त होना चाहिए क्योंकि टोकन आवंटन से हालत नहीं सुधरने वाले। न्यायिक सुधारों को लेकर देश में न्यायाधीशों की रिटायरमेंट आयु बढ़ाकर 70 साल की जानी चाहिए। जिससे देश को अनुभवी व परिपक्व न्यायाधीश मिलेंगे। देखने में आया है कि मामलों की संख्या कम करने के लिए अलग ट्रिब्यूनल गठित किए जाते हैं जिसमें रिटायरड न्यायाधीश लगाए जाते हैं जबकि इसका कोई औचित्य ही नहीं है। इसके स्थान पर होना यह चाहिए कि न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जाए व ऐसे न्यायाधीश तैनात किए जाने चाहिए जो संबंधित विषय में माहिर हों। जहां तक अलग से ट्रिब्यूनल के  गठन का मामला है तो यूं भी इनके मामले बाद में उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में ही ले जाए जाते हैं। इसलिए संबंधित मामले क्यों न इन्हीं न्यायालयों में ले जाए जाएं। साथ ही  ऐसे में क्यों न उच्च व उच्चतम न्यायालय में रिटायरमेंट आयु बढ़ा दी जाए। देश में चूंकि आज भी  पुराने कानून का ही प्रचलन है इसलिए बदलती हुई परिस्थितियों में पुराने कानून में भी परिवर्तन किया जाना आज की आवश्यकता है। मोबाइल अदालतों का प्रचलन शुरू करने पर भी जहां आम वर्ग को सस्ता न्याय उपलब्ध हो सकेगा वहीं अदालतों में लंबित पड़े मामले भी कम होंगे। इसी प्रकार प्री-ट्रायल, इन-ट्रायल व पोस्ट-ट्रायल प्रचलन को बढ़ावा देकर भी लंबित मामलों में कमी लाई जा सकती है। देश में यदि लिटिगेशन फ्री विलेज को प्रोत्साहन दिया जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि न्यायालयों में आने वाले मामलों में कमी आएगी। जहां तक न्यायिक सुधारों की बात है तो न्यायपालिका में इसकी सख्त आवश्यकता है। न्यायालिका में भ्रष्टाचार आम बात नहीं है बल्कि बिरले ही इस तरह की कोई घटना होती है। इसलिए यह कह देना कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है सही नहीं है। उच्च न्यायालय के पास पहले ही प्रावधान है कि यदि कोई भ्रष्टाचार का मामला आता है तो आरोपी अधिकारी कि खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाती है व जहां भी आरोप साबित हुआ है उस स्थिति में उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है। 
|