न्यायिक व्यवस्था में दखल रखने वाले घटकों का विश्लेषण आवश्यक
बीडी पाण्डे
08/04/10 | Comments [0]
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न्यायिक सुधार ज्यूडिशियल रिफोर्म के लिए न्यायिक व्यवस्था से जुड़े या न्यायिक व्यवस्था में
दखल रखने वाले घटकों का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। न्याय प्रणाली के सुधार के लिए
अत्यन्त महत्वपूर्ण व प्रभावशाली घटक है संसद। नये प्रभावशाली व समाज में जनोपयोगी कानून
बनाकर संसद व सरकार द्वारा सीधे तौर पर न्यायिक सुधार लाये जा सकते हैं। न्याय प्रणाली
का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है न्यायालय अर्थात उनमें कार्य करने वाले न्यायाधीश व
अधिवक्तागण। न्यायाधीश व अधिवक्ता वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यदि अपनी
कार्य प्रणाली, अपना आचरण, व्यवहार व दृष्टिकोण में परिवर्तन ले आयें तो नि:सदेह न्यायिक
सुधार होगा। उदाहरण के तौर पर वादकारी के हित को सर्वोच्च मानते हुए यदि वकील उसकी
पैरवी पूर्ण मनोयोग एवं ईमानदारी से करे तो वह अपने पेशे के उद्देश्य को पूरा करता है। यहीं
बात न्यायाधीशों पर भी लागू होती है। जहां एक न्यायाधीश वादकारी की सामाजिक
स्थिति, उसका प्रभाव उसकी पहुंच को ध्यान में रखकर मुकदमों की सुनवाई करेंगे वहीं सच्चे
न्याय की अवधारणा समाप्त हो जायेगी। जबकि इन सब बातों से परे यदि कोई न्यायाधीश
मुकदमे की सुनवाई अपना कर्तव्य समझ कर करता है तो वह सच्चे अर्थो में न्यायाधीश अर्थात
न्यायदाता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 द्वारा समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार दिया गया
है जहां उच्च न्यायालय को न केवल संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों को पालन करवाने के
निर्देश देने की शक्ति है वहीं उसे इन अधिकारों का हनन करने वाले को दंड देने की शक्ति भी है।
भगवान राम व श्रीकृष्ण के आदर्शो को ध्यान में रख यदि न्याय व्यवस्था चले तो वास्तविक
न्याय होने में कोई संदेह नहीं है। न्यायाधीश भी जन्म से एक आम मनुष्य है। यह बात अलग है
कि जिस कुर्सी पर बैठकर वह न्याय करते हैं वह भगवान के स्वरूप में है। इसलिए यदि एक आम
आदमी के मामले की सुनवाई करते समय यदि कोई न्यायाधीश स्वयं को उस आम आदमी की जगह
रखे और उस आम आदमी की पीड़ा को महसूस करे तो उसे न्याय करने में किंचित मात्र भी उलझन
नहीं होगी और न्यायिक सुधार के लिए इससे अच्छा क्या सुझाव हो सकता है। आज भारतीय
समाज के प्रत्येक वर्ग में भ्रष्टाचार, धनलोलुपता, लालच, गरीब का शोषण इत्यादि अनगिनत
बीमारियां घर कर गयी हैं। न्याय पालिका में भी आम व्यक्ति का विश्वास दिनोंदिन कम
होता जा रहा है। हालांकि न्यायपालिका अन्य दोनों अंगों विधायिका एवं कार्यपालिका
दोनों से भ्रष्टाचार व बेईमानी में कोसों पीछे हैं और कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बड़े-बडे़
प्रभावशाली नेताओं के विरूद्ध फैसले देकर यह साबित भी कर दिया है कि न्यायपालिका की
छवि अन्य की अपेक्षा बेदाग है।


  

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