व्यस्तता की जंजीरों में जकड़ा 'मान'
राजेंद्र डोगरा, शिमला
08/03/10 | Comments [0]
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संगीन अपराधों के मामलों में न्याय के लिए भले ही सालों साल बीत जाएं लेकिन देश की बड़ी हस्तियों के मानहानि मामले सात बरसों में भी आगे न सरकें, इस पर अचरज होना स्वाभाविक है। केंद्रीय विदेश मंत्री आनंद शर्मा, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर  सिंह और हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल जैसे राजनेताओं के मामलों पर सुनवाई सिर्फ इसलिए पूरी नहीं हो रही क्योंकि ये सभी बड़ी राजनीतिक हस्तियां ''अति-व्यस्त' हैं। और बगैर प्रमाण और तमाम सुनवाईयों के, अदालत भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पर रही। परिणामस्वरूप तारीख पर तारीख और केस आगे से आगे खिंचता जा रहा है।
यह किस्सा ना तो हत्या का है ना ही जमीन जायदाद का। चुनावी दिनों में नेताओं द्वारा एक दूसरे पर की गई टीका टिप्पणी की सच्चाई की तलाश करते अदालत को सात बरस छह महीने होने जा रहे हैं। लेकिन समाधान कहीं समीप दिखता नजर नहीं आ रहा।
पहला विवाद तक हुआ जब हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे। जनवरी 2003 में हमीरपुर के गांधी चौक में कैप्टन अमरिंद्र सिंह आए और भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल पर संपत्तियों को लेकर भ्रष्टाचार के संदर्भ में आरोप लगे। इसके बाद सोलन जिला के बड़ोग में हिमाचल के कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने प्रेस वार्ता में कई कांग्रेसी विधायकों के समक्ष प्रेम कुमार धूमल पर संपत्ति को लेकर टिप्प्णी की। फिर प्रेम कुमार धूमल ने अमरिंदर व आनंद शर्मा दोनों पर मान हानि का मुकद्दमा मार्च 2003 को दायर कर दिया। सीजीएम शिमला की कोर्ट में प्रेम कुमार धूमल बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह व प्रेम कुमार धूमल बनाम आनंद शर्मा के दो मामले स्वीकार हो गए। उस वक्त प्रेम कुमार धूमल भी मुख्यमंत्री नहीं थे लिहाजा सुनवाईयों के दौरान यह अदालत में लगातार हाजिर होते रहे। लेकिन चूंकि आनंद शर्मा केंद्रीय मंत्री बन गए अत: उनके पैरवीकारों ने व्यस्तता का हवाला देकर उनकी पर्सनल अपियरेंस पर छूट मांग ली। आनंद भी 5.4.03 को पहली बार अदालत तो आए उसके बाद गवाहों की 'व्यस्तता' फैसले की दिक्कत बन गई। इस वर्ष मामले ने और जोर पकड़ा तो 6.3.10, 17.4.10, 1.5.10, 29.5.10, 3.7.10, 24.7.10 और 29.7.10 को कभी गवाह नहीं होते, कभी न्यायाधीश के अवकाश व कभी किसी अन्य वजह से दिन सरकाते रहे। विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि 'डिफेंस में विटनेस को आना जरूरी है, परंतु कई गवाह उपलब्ध नहीं हो पा रहे, इसी कारण सुनवाई पूरी नहीं हो पा रही।' इसी बीच प्रेम कुमार धूमल भी मुख्यमंत्री बन गए। और विटनेस के तौर पर अधिकांश नेता अब विधायक हैं। जोकि डिफेंस के ब्यान के लिए उपलब्ध नहीं हो पा रहे।
बहरहाल बड़ी हस्तियों के पास संपत्तियों को लेकर की गई सार्वजनिक टिप्पणी की हकीकत अदालत की दीवारों से टकरा-टकरा कर शायद यही कहने को मजबूर है कि ''मुझे व्यवस्था की जंजीरों से मुक्त करो, देश का हर वोटर मेरा चेहरा देखना चाहता है।''


  

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