दिल्ली हाईकोर्ट की स्थापना 31 अक्टूबर 1966 को की गई। शुरुआत में लेटर्स पेटेंट द्वारा 21 मार्च 1919 को स्थापित लाहौर स्थित हाईकोर्ट आफ ज्यूडीकेचर के न्यायिक अधिकार क्षेत्र के तहत पंजाब और दिल्ली प्रांत आते थे। यह स्थिति भारतीय स्वतंत्रता कानून,1947 तक बनी रही, जब भारत और पाकिस्तान अलग-अलग गणराज्य बने। द हाईकोर्ट्स []पंजाब] आर्डर 1947 के तहत उस समय के पूर्वी पंजाब कहे जाने वाले क्षेत्र के लिए अलग हाईकोर्ट को 15 अगस्त 1947 से प्रभाव में लाया गया। हाईकोर्ट आफ ईस्ट पंजाब ने शिमला के पीटरहॉफ भवन से काम करना शुरू किया। जनवरी 1981 में इस भवन में भयंकर आग लगने से यह जलकर खाक हो गया। जब 1954-55 में पंजाब सरकार का सचिवालय चंडीगढ़ स्थानांतरित हुआ तो साथ साथ हाईकोर्ट भी यहीं आ गया। बाद में इसका नाम पंजाब हाईकोर्ट हो गया। यह हाईकोर्ट एक सर्किट बेंच द्वारा दिल्ली न्यायिक क्षेत्र के मामले भी देखती थी। दिल्ली के महत्व, इसकी जनसंख्या और अन्य बातों पर विचार करते हुए संसद को यहां एक नए हाईकोर्ट की स्थापना की जरूरत दिखी। इस संबंध में 5 सितंबर 1966 को दिल्ली हाईकोर्ट एक्ट,1966 प्रभाव में आया। दिल्ली हाईकोर्ट एक्ट का अनुच्छेद 3 []1] केंद्र सरकार को संघ शासित दिल्ली के लिए हाईकोर्ट की स्थापना की अधिसूचना द्वारा दिन तय करने के लिए अधिकृत करता है। इस तरह 31 अक्टूबर 1966 को दिल्ली हाईकोर्ट की स्थापना की गई। शुरुआत में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा संघ शासित प्रदेश दिल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश का भी न्यायिक कामकाज देखा जाता था। शिमला की रेवेंसवुड भवन में स्थित दिल्ली हाईकोर्ट की हिमाचल प्रदेश पीठ कामकाज देखती थी। यह प्रक्रिया तब तक जारी रही तब तक कि 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश एक्ट 1970 द्वारा हिमाचल प्रदेश अलग राज्य नहीं बन गया। दिल्ली हाईकोर्ट में स्थापना के समय चार जज थे। इनमें मुख्य न्यायाधीश केएस हेगड़े, जस्टिस आईडी दुआ, जस्टिस एचआर खन्ना और जस्टिस एसके कपूर शामिल थे। समय-समय पर दिल्ली हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या बढ़ती रही। मौजूदा समय में दिल्ली हाईकोर्ट में स्वीकृत क्षमता 29 स्थायी  और 19 अतिरिक्त जजों की है।
स्त्रोत : दिल्ली हाईकोर्ट वेबसाइट |