न्याय की उम्मीद में खो बैठा सुधबुध
जम्मू, जागरण संवाददाता
08/02/10 | Comments [0]
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देश की सीमा पर दुश्मनों के दांत खट्टे कर सेवानिवृत्त हुआ श्यामलाल अब न्याय प्रणाली के आगे हार मान चुका है। पिछले 20 साल से अपने रिश्तेदारों के साथ चले आ रहे भूमि विवाद को लेकर अदालतों के चक्कर काटते-काटते अब वह अपनी सुधबुध तक खो बैठा है। हालत यह है कि वह घर से कहीं और जाने के लिए निकलता है, लेकिन कोर्ट पहंुच जाता है। श्यामलाल निवासी हक्कल चट्ठा जब सेना से रिटायर होकर घर आया तो उसे पता चला कि उसकी जमीन पर उसके कुछ रिश्तेदारों ने कब्जा कर रखा है। न्याय प्रणाली पर विश्वास कर उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन 1990 से उसका मामला कोर्ट में लंबित है। श्यामलाल का कहना है कि कभी जज नहीं तो कभी वकील नहीं और जब दोनों हों तो प्रतिवादी पक्ष नदारद मिलता है। वकील भी उसे अगली तारीख लेकर दे देते हैं। इसी तरह पिछले 10 साल से अपने रिश्तेदार के साथ चले आ रहे प्रापर्टी विवाद के कारण कोर्ट के चक्कर काट रहे ओम प्रकाश भाटिया का कहना है कि कई बार उसे न्याय मिलने की आस जगी, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से टूट गई। दिल की बीमारी से ग्रस्त भाटिया का कहना है कि वह न्याय की आस में हर बार कोर्ट पहंुचता है, पर मिलती है तो सिर्फ अगली तारीख।


  

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