कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। ऐसे ही हमारे न्याय के मंदिरों में भी अंधेर तो नहीं है, मगर देर जरूर हो जाती है। आज दैनिक जागरण के बेहतर न्याय लायेगा बदलाव जनजागरण अभियान के दौरान अधिवक्ताओं व वादकारियों ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और कहा कि कभी कभी तो न्याय इतनी देर से मिलता है कि वह किसी अंधेर से कम नहीं होता। अधिवक्ताओं ने कहा कि लिए वादों के निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए। लोक अदालतों को और प्रभावी बनाकर न्याय पालिका पर मुकदमों के बोझ को कम किया जा सकता है। न्याय व्यवस्था को पारदर्शी बनाये जाने की जरूरत है। दशकों पुराने प्रभावहीन कानूनों में मौजूदा परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव आज की जरूरत है।
शनिवार को जिला न्यायालय परिसर में आयोजित अभियान में वकीलों व वादकारियों ने वर्तमान न्याय व्यवस्था व इसमें बदलाव के बारे में बेबाकी से अपनी राय दी। अधिवक्ता बरीत सिंह ने कहा कि मौजूदा न्याय प्रणाली में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या से उनके निस्तारण में देरी हो रही है। इनके निस्तारण की सीमा निर्धारित होनी चाहिए। अधिवक्ता जितेंद्र सिंह व क्यामुद्दीन अंसारी का कहना है कि देर से मिले न्याय में भावना व मकसद खत्म हो जाता है। न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए निचले स्तर से ही पहल करनी जरूरी है। अधिवक्ताओं ने वादों से जुड़ी जानकारियों को ऑन लाइन किये जाने को भी आज की जरूरत बताया। वहीं अधिकांश वादकारियों ने न्याय मिलने में देरी को न्याय व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी बताया। जसपुर निवासी अंकुर सक्सेना ने बताया कि उनके पिता के विरुद्ध सात वर्षाे से धोखाधड़ी का मुकदमा चल रहा है। उन्हें न्याय मिलने का भरोसा तो पूरा है, लेकिन उसके निपटाने में वर्षाे लग जायेंगे। बेटी को जलाकर मारने का प्रयास करने वाले ससुरालियों को सजा दिलाने के लिए पांच साल से भटक रहे बरा निवासी रामेश्वर दयाल भी न्याय की अवधि को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। आईएमए के सचिव डॉ.संजीव शुक्ला का मानना है कि लोक अदालतों को अधिकार संपन्न बनाकर वादों के निस्तारण में तेजी लाई जा सकती है। वादकारी तजिंदर सिंह, भुवन पांडे, इमाम बक्श, सिमरन, दर्शन सिंह, सुधाकर दुबे, केसी जोशी आदि ने भी न्याय प्रणाली में सुधार पर बल देते हुए वादों के निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित किये जाने को जरूरी बतायी। इस दौरान 170 सर्वे फॉर्म भी भरवाये गये।
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