अब तो भीख जैसा लगता है हक मांगना
जागरण संवाददाता, जम्मू
07/31/10 | Comments [0]
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इंजीनियर राहुल रैना का आज देश की न्यायपालिका पर से विश्वास उठ गया है। राहुल को लगता है कि अदालतों में उन्हीं की सुनी जाती है जिनकी जेब में पैसा होता है। सिर्फ उन्हीं को हक और इंसाफ मिलता है जो समाज में दबदबा या न्यायपालिका से जुड़े लोगों से संबंध रखते हैं, आम आदमी के लिए कानून पूरी तरह से अंधा है।
पुरखू कैंप निवासी राहुल की यह राय ऐसे ही कायम नहीं हुई। राहुल के अंकल राजनाथ भट्ट का तीन माह पूर्व निधन हो गया था। राजनाथ के बेटे राकेश भट्ट व विनोद भट्ट ने कुछ दिनों बाद कोर्ट में अपनी माता ऊषा देवी को कानूनी वारिस घोषित करने के लिए अर्जी दी। उन्होंने अपने ममेरे भाई राहुल को भी साथ लिया। राहुल के अनुसार उन्होंने सभी संबंधित दस्तावेज कोर्ट में जमा कराए, लेकिन आज तक ऊषा देवी को राजनाथ का कानूनी वारिस घोषित नहीं किया गया। हालात तब और बिगड़ गए जब इस कानूनी जंग के दौरान राजनाथ का बड़ा बेटा विनोद भी गत माह एक सड़क हादसे में चल बसा। शुक्रवार को इसी सिलसिले में जानीपुर स्थित हाईकोर्ट कांप्लेक्स में पहुंचे राहुल व राकेश भट्ट ने बताया कि पति की मौत पर पत्नी को कानूनी वारिस घोषित करने की प्रक्रिया चंद घंटों की होनी चाहिए, लेकिन वे पिछले तीन महीने से चक्कर काट रहे हैं। राहुल के अनुसार इसकी फीस 500 रुपये हैं, लेकिन वो पांच हजार रुपये खर्च कर चुके हैं और आज तक राजनाथ की पत्नी को उनका कानूनी वारिस घोषित नहीं किया गया। ऐसे में वह विनोद कुमार भट्ट को कानूनी वारिस घोषित करने का ख्याल ही छोड़ चुके हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अदालत में अपना हक मांगना भी भीख मांगने के बराबर है।
जानीपुर निवासी अश्विनी सिंह के अनुसार तो न्यायपालिका में सुधार लाने के लिए जरूरी है लंबित मामलों को एक झटके में निपटाया जाए। सिंह के अनुसार एक छोटे से मामले के निपटारे में सालों लग जाते हैं जिससे आम आदमी का इंसाफ पर से विश्वास हटता जा रहा है। अश्विनी के अनुसार कुछ साल पूर्व उनका अपने पड़ोसी दुकानदार से दुकान के शटर को लेकर झगड़ा हुआ था। मामला कोर्ट में पहुंचा और पिछले पांच साल से वह कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कभी वकील नहीं तो कभी गवाह नहीं, फैसला आज तक नहीं हुआ।
बन तालाब निवासी योगेंद्र कुमार अपने घर के निर्माण पर लगे स्टे को हटवाने के लिए इन दिनों अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। योगेंद्र के अनुसार उन्होंने अपने प्लाट में ही निर्माण शुरू करवाया था, लेकिन पड़ोसी ने आरोप लगाया कि उसने उनकी जमीन का कुछ हिस्सा हथिया लिया है। योगेंद्र के अनुसार वह अपने प्लाट संबंधी दस्तावेज कोर्ट में जमा करवा चुके हैं और मकान का नक्शा भी, लेकिन अदालत के पास इतना समय ही नहीं कि उसके जमा करवाए दस्तावेजों पर नजर डाले। संजय नगर निवासी दिनेश शर्मा व राहुल शर्मा को मौजूदा न्यायिक प्रणाली पर विश्वास नहीं रहा। दोनों भाइयों के अनुसार उनके पिता की मौत के बाद वे अपनी पुश्तैनी संपत्ति संबंधी दस्तावेज कोर्ट से निकलवाने के लिए आए थे। चूंकि उनकी पुश्तैनी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों ने कब्जा कर रखा है और पिता की मौत के बाद उन्हें अपना हक हासिल करने के लिए अदालत की एकमात्र उम्मीद की किरण नजर आती थी, लेकिन पिछले डेढ़ साल से वो अदालतों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें किसी ने उनकी संपत्ति का रिकार्ड नहीं दिया जबकि उनके पिता व उनके भाइयों के बीच संपत्ति को लेकर कोर्ट में ही समझौता हुआ था।


  

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