एक माह बोले तो 15 साल
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़
07/31/10 | Comments [0]
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करीब तीन दशक पूर्व जब चंडीगढ़ की महिला चिकित्सक एस कटारिया ने नीलामी में दस मरले का प्लाट दो लाख रुपये में खरीदा होगा तो वह बहुत खुश होंगी लेकिन बाद में उन्हें लगा होगा कि उफ! ये तो पंगा ले लिया। कारण, उन्हें अपने ही प्लाट पर कब्जा लेने में 29 साल लग गए। धन की बर्बादी व मानसिक परेशानी हुई सो अलग। यहां खास बात यह भी कि हालांकि हाईकोर्ट ने मामले का निपटारा करने के लिए 1995 में समयावधि एक माह तय कर दी थी लेकिन स्वयं उसने ही इसका निपटारा करने में डेढ़ दशक लगा दिए।
90 वर्षीय डॉ. एस कटारिया ने 1981 में एक नीलामी के दौरान चंडीगढ़ के सेक्टर 36 बी में 10 मरले का प्लाट दो लाख रुपये में खरीदा था। ये बात दीगर है कि इस प्लाट की वर्तमान में मार्केट वैल्यू करीब दो करोड़ है।
हुआ यूं कि बिमला देवी ने 1978 में शीला देवी से 5000 रुपये का लोन लिया था। जब बिमला ने लोन नहीं चुकाया तो शीला ने कोर्ट का सहारा लिया। चंडीगढ़ की जिला अदालत ने शीला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बिमला को पैसे लौटाने का आदेश दिया। लेकिन बिमला पैसे लौटाने में नाकाम रही। इस पर कोर्ट ने अक्टूबर 1978 में सेक्टर 36 में बिमला देवी के नाम पर जो प्लाट था, उसकी नीलामी कर पैसे वसूलने का आदेश जारी कर दिया। डॉ. एस कटारिया ने इस नीलामी में सबसे ऊंची दो लाख की बोली लगाते हुए यह प्लाट खरीद लिया।
बिमला ने इस नीलामी पर आपत्ति दर्ज कराते हुए अदालत में अर्जी दाखिल की और प्लाट पर डॉ. कटारिया को कब्जा नहीं दिया। उसने कोर्ट में कहा कि वह डॉ. कटारिया से समझौता करना चाहती है और प्लाट की एवज में उन्हें पैसे दे देगी। लेकिन बाद में बिमला ने न तो कटारिया को पैसे दिए और न ही प्लाट पर कब्जा। इसके बाद जिला अदालत ने बिमला को तुरंत प्लाट कटारिया को देने का आदेश दिया तो उसने इसके खिलाफ हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। लेकिन यहां पर भी फैसला डॉ.कटारिया के पक्ष में गया।
इस पर बिमला ने डॉ.कटारिया को प्लाट पर कब्जा दे दिया। लेकिन एक दिन बाद ही बिमला व उसके पति ने जबरन प्लाट में घुसकर दोबारा उस पर कब्जा कर लिया। इसको लेकर इस दंपति पर पुलिस में मामला भी दर्ज हुआ।
बिमला ने डॉ.कटारिया को दोबारा कानूनी लड़ाई में फंसाते हुए 1995 में फिर एक अपील कोर्ट में दाखिल कर दी। इसे हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। और इस मामले का निपटारा एक महीने में करने के लिए 22 मई 1995 की तारीख मुकर्रर की। लेकिन हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश के बावजूद इस मामले का निपटारा करने में 15 साल लगा दिए। 2010 में कहीं जाकर मामले का फैसला आया। हालांकि फैसला फिर डॉ.कटारिया के पक्ष में गया लेकिन इस बीच उन्हें अपने ही प्लाट पर कब्जे के लिए करीबन तीन दशक का लंबा इंतजार करना पड़ा।


  

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