चक्करों के चक्रव्यूह से टूटती है न्याय की आस
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली
07/30/10 | Comments [0]
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इस समय देश की अदालतों में साढ़े तीन करोड़ मुकदमे विचाराधीन हैं। इसका मतलब यह नहीं कि जनता को देश की न्याय प्रणाली में बहुत ज्यादा विश्वास है। कानून-व्यवस्था में विश्वास रखने वालों को लंबे समय तक न्यायालय के चक्कर काटने के बाद भी न्याय नहीं मिलता है तो उनकी आस धूमिल होने लगती है। बेहतर न्याय लाएगा बदलाव के नारे के तहत न्यायिक प्रणाली को वर्तमान दौर के अनुकूल बनाने के लिए आम जनता की राय को मंच देने के लिए दैनिक जागरण द्वारा दिल्ली की जिला न्यायालयों में शुरू किए गए अभियान के तीसरे दिन भी वकीलों व आम जनता ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। विभिन्न मामलों की सुनवाई के लिए अदालतों के चक्कर काट-काट कर परेशान हो चुके लोगों ने जागरण के इस अभियान की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस जनजागरण अभियान से सरकार भी जागरूक होगी और न्याय प्रणाली की कमजोरियों को दूर करते हुए जनता के विश्वास को टूटने नहीं देगी। पटियाला हाउस, द्वारका, रोहिणी व कड़कड़डूमा कोर्ट में जागरण द्वारा शुरू किए इस अभियान के तीसरे दिन कोर्ट आने वाले सैकड़ों लोगों व वकीलों ने अपनी राय दी। बहू को जलाने का प्रयास करने व दहेज प्रताड़ना के मामले की सुनवाई के लिए आए दंपति ओमप्रकाश व कमलेश ने कहा कि जिस बहू को घर संवारने लाए थे, उसने पूरे घर को ही उजाड़ दिया। बेटा कई साल से गायब है और वे, उसकी बेटी, दामाद, छोटा बेटा, उसकी ननद व ननदोई बहू द्वारा दर्ज कराए मामले के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। छह सालों में उनको सिर्फ तारीख मिल रही है, जिससे न्याय पाने की आस टूटती जा रही है। पटियाला हाउस कोर्ट आए वकील राजेंद्र ने बताया कि लोग कोर्ट न्याय की आस के साथ आते हैं। वहीं बार-बार अदालत के चक्कर से उनकी आस टूटने लगती है। कई बार केस फैसले के बहुत करीब होती है और सुनवाई कर रहे जज का स्थानांतरण हो जाता है और मामले की सुनवाई नए सिरे से शुरू हो जाती है। वहीं संत नगर निवासी रामलाल की दुकान पर किराएदार ने 15 साल से कब्जा कर रखा है। उसके बाद कोर्ट में मामला आने के बाद उसे अब तक न्याय तो नहीं मिला पर तारीख पर तारीख जरूर मिलती रही। वहीं अधिवक्ता एसके सुमन ने कहा कि आम जनता का न्याय में विश्वास बनाए रखने के लिए जजों की जिम्मेदारी भी तय करनी होगी। पैंथर्स पार्टी से जुड़े संजय सचदेव ने जागरण के इस अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा कि कानून की खामियों को दूर किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जागरण की यह पहल काफी अच्छी है। इस दिशा में अन्य लोगों को भी ध्यान देना चाहिए। कड़कड़डूमा कोर्ट में एक मामले की पेशी के लिए आए नंद नगरी निवासी राजेश परमार ने कहा कि उनकी आस्था को भारतीय न्याय प्रणाली ने काफी चोट पहुंचाया है। पुलिस ने उन्हें शराब तस्करी के झूठे केस में फंसा दिया था। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिये वे पांच साल तक अदालत में केस लड़ते रहे, लेकिन मुकदमा लंबा खिंचता रहा। अंत में बार-बार कोर्ट में पेशी पर आने से परेशान होकर उन्होंने आज खुद ही बिना गलती के अपराध कबूल कर लिया और अदालत ने उसे जुर्माना लगाकर छोड़ दिया। इस तरह मिले न्याय ने उनके विश्वास को गहरा धक्का पहुंचाया है। अधिवक्ता अनिल भाटी ने कहा कि एक व्यक्ति ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आयकर विभाग में नौकरी हासिल की। सीबीआई जांच में इसका खुलासा भी हो गया। लेकिन अदालत से सुनवाई के बाद जब दोषी को सजा सुनाई गई, उसके रिटायरमेंट में केवल एक ही माह शेष बचा था। ऐसा न्याय किस काम का। इसके अतिरिक्त अदालत में विभिन्न मामलों में पेशी पर आए मनीष, लता देवी, मनोज कुमार, ज्योति वर्मा, कांता प्रसाद शर्मा, इमरान अली, इकरार मोहम्मद और श्याम सिंह ने कहा कि वे कई-कई सालों से अपने विभिन्न आपराधिक मुकदमे लड़ रहे हैं। कभी पुलिस रिपोर्ट फाइल नहीं करती है तो कभी अदालत की छुट्टी हो जाती है, कभी वकील हड़ताल पर चले जाते हैं। यहां पर तारीख पर तारीख मिलती रहती हैं, इंसाफ नहीं मिलता। इन कारणों से उनमें न्याय प्रणाली को लेकर असंतोष है।


  

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