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माला दीक्षित
07/29/10 | Comments [0]
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नई दिल्ली। - मुकदमों का ढेर खत्म करने के लिए 86 साल में 13 रिपोर्ट। 26 साल तक अंग्रेजों ने सर खपाया और आजादी के बाद पिछले साठ सालों से हमारे कानूनविद् मगजमारी कर रहे हैं। मगर नतीजा सिफर। कौन करेगा यह? कैसे होगी मुश्किल हल?
- पंद्रह साल से लंबित मुकदमों को तीन साल में खत्म करने का नया लक्ष्य मगर पिछली 13 रिपोर्ट में से ज्यादातर की सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं। कहां है कमजोर कड़ी? कैसे कम होगी मुकदमों की औसत अवधि?
देश में लंबित मुकदमों की समस्या से निबटने के प्रयासों का अगर एक रोचक इतिहास है तो उतना ही दिलचस्प ब्योरा इन उपायों यानी समितियों और आयोगों की सिफारिशों के हश्र का भी है। अगर इन सिफारिशों को लागू कर दिया गया होता तो आज हमारी न्याय व्यवस्था मुकदमों के पहाड़ तले न दबी होती। सुप्रीम कोर्ट से बेहतर और बानगी क्या होगी जहां 1950 में 690 मुकदमे लंबित थे और इस समय 54,864 मुकदमे लंबित हैं।
लंबित न्याय की समस्या औपचारिक न्यायिक व्यवस्था जितनी ही पुरानी है। 1924 में लंबित मुकदमों पर पहली बार रैंकिन समिति का गठन किया गया था।  इसके बाद 1949 में हाईकोर्ट एरियर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी। 1950 में यूपी ज्युडिशियल रिफार्म कमेटी ने मुकदमों का ढेर घटाने के तरीके सुझाए। इसके बाद विधि आयोग की 14, 27, 41, 54, 58, 77, 80, 90, 139 और 114वीं  रिपोर्ट समेत कुल दस रिपोर्ट आई जिनमें त्वरित न्याय के सुझाव दिए गए। इन रिपोर्ट में ज्यादातर की सिफारिशें लागू ही नहीं हुई। विधि आयोग की ताजा रिपोर्ट के अलावा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस गांगुली ने भी उपाय बताए थे।
अब तक आई विभिन्न समितियों की सिफारिशों में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए तमाम उपाय सुझाए गए हैं। एक निश्चित समय के भीतर फैसला करने, न्यायालयों की छुट्टियां घटाने, न्यायालयों में न्यायिक कामकाज के घंटों में बढ़ोतरी से लेकर वकीलों की दोहराव वाली मौखिक दलीलों को खत्म करने और लिखित दलील जैसे सुझाव प्रमुख हैं। इनमें स्पष्ट और निर्णायक फैसलों की जरूरत भी बताई गई है ताकि आगे मुकदमेबाजी न हो। यहां तक कि मुकदमों का ढेर घटाने के लिए संसद ने अपराध प्रक्रिया संहिता और दीवानी प्रक्रिया संहिता में संशोधन किए हैं। लेकिन लागू कुछ नहीं हो पाता। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस सिन्हा का कहना है कि 13 रिपोर्ट में से ज्यादातर की सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं। इनका मानना है कि अगर मुकदमों का अंबार खत्म करना है तो विभिन्न कानूनों में हुए संशोधनों को सख्ती से लागू करना होगा। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो मौजूदा परिदृश्य में कोई खास बदलाव नहीं आने वाला।
पिछले वर्ष अक्टूबर में संप्रग सरकार ने न्यायिक सुधारों के तहत लंबित मुकदमों की औसत अवधि 15 साल से घटाकर तीन साल तक लाने की बात शुरू की।  नए एजेंडे में सरकार ने 2012 तक सभी लंबित मुकदमों को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। 2010 आधा बीत चुका है और अभी कदम भी नहीं उठाए पाए हैं। .. न्याय में देर का अंधेर अभी खत्म होता नहीं दिखता।


  

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