इस अंधेर के लिए सरकारें भी जिम्मेदार
माला दीक्षित
07/29/10 | Comments [0]
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नई दिल्ली। - दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान का सरकार के साथ 22 साल तक मुकदमा चला। सरकार हारी।
- उत्तर प्रदेश में नसबंदी के बावजूद एक महिला गर्भवती हो गई। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को डेढ़ लाख रुपये मुआवजा देने को कहा। लेकिन सरकार ने मुकदमेबाजी पर करीब पंद्रह साल तक लाखों रुपये फूंके। सुप्रीम कोर्ट से हारने के बाद मुआवजा भी अदा किया।
- बिहार की दुर्गावती जलाशय परियोजना 33 साल तक कानूनी पचड़े में फंसी रही। लागत 20 गुना बढ़ी।
हैरानी की बात नहीं है कि अदालती रिकार्डो में भी सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है। निचली अदालतों से हारना और ऊपर की अदालतों में अपील। खर्च पर खर्च, पेंच पर पेंच और देरी पर देरी। साढ़े तीन करोड़ लंबित मुकदमों में बड़ी हिस्सेदारी सरकार की है। अब तो सरकार खुद अपने ही मुकदमों से उकता गई है। इसलिए नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी बना कर अपने मुकदमों की छंटाई-बिनाई शुरू की है।
 सुप्रीम कोर्ट में सरकारी मुकदमों की एक बानगी देखिए। वर्ष 2009 में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों और सीबीआई की ओर से 4033 नए वाद दाखिल किए गए। इनमें या तो सरकार वादी है या प्रतिवादी। ज्यादातर मामले वित्त मंत्रालय, उत्पाद शुल्क, एक्साइज, आयकर, रेलवे, रक्षा मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, कैबिनेट सचिवालय तथा संचार मंत्रालय के हैं। सुप्रीम कोर्ट में रोज सरकार के औसतन 50 मुकदमों की पैरवी होती है। इनमें सोमवार और शुक्रवार को नए मामलों की होनेवाली सुनवाई शामिल नहीं है।
 गांधी शांति प्रतिष्ठान के मुकदमे में न केवल सरकार के हाथ हार लगी थी बल्कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार भी मिली। सरकार भले ही मुकदमे हारती हो लेकिन उनमें होनेवाली देरी वादियों और प्रतिवादियों के लिए आफत बन जाती है। हर मामले में अपील दाखिल करना सरकार की आदत है। सेवा शर्तों को लेकर सरकार के साथ विवाद कर्मचारियों को बरसों अदालतों के चक्कर लगवाते है। 
दिल्ली की अदालतों में भी लंबित सरकारी मुकदमों का ढेर लगा है। हाईकोर्ट में ऐसे लंबित मुकदमों की संख्या 3370 है। इनमें रेलवे और आयकर विभाग के मामले शामिल नहीं हैं। दिल्ली की जिला अदालतों, उपभोक्ता फोरम, ट्रिब्यूनल में सरकार के कुल 7722 मुकदमे लंबित हैं। जबकि दिल्ली की केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल []कैट] में 559 मुकदमे लंबित हैं। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलूर हाईकोर्ट में लंबित सरकारी मुकदमों की संख्या सैकड़ों में नहीं, हजारों में है।
सरकार को अब महसूस हो रहा है कि इतनी मुकदमेबाजी अनुचित है। मगर नई लिटिगेशन नीति भी बगैर देरी के लागू नहीं हो सकी। सरकार ने अपने मुकदमों का ढेर खत्म करने के लिए पिछले साल अक्टूबर में इसकी घोषणा की थी लेकिन इसे लागू करने में आठ महीने लग गए। इस साल एक जुलाई से नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी लागू हुई है। इसके तहत बेमतलब के मुकदमे समाप्त करने की सिफारिश की जाएगी। यही नहीं, हर मामले में अपील दाखिल करने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगाई जाएगी और नौकरी तथा सेवानिवृत्ति लाभ जैसे कर्मचारियों के व्यक्तिगत मुकदमों से जुड़े फैसलों को आमतौर पर ऊंची अदालत में चुनौती नहीं दी जाएगी।


  

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