राष्ट्रीय जागरण, नई दिल्ली   न्यायिक तंत्र में समग्र सुधार के लिए दैनिक जागरण के जन जागरण अभियान-बेहतर न्याय लाएगा बदलाव-के पहले दिन देश के अनेक हिस्सों में बड़ी संख्या में आम लोग, विधि छात्र, वादी-प्रतिवादी, अधिवक्ता और न्यायाधीश अपनी बात कहने के लिए उमड़ पड़े। ज्यादातर लोगों का समवेत स्वर यह था कि न्याय के लिए इंतजार अब और नहीं सहा जाता। जहां बहुत से लोगों ने पुराने कानूनों में बदलाव मांग की वहीं कई ने न्याय के लिए समय सीमा तय किए जाने की जरूरत जताई। एक बड़ी संख्या में लोग ऐसे थे जिन्होंने दैनिक जागरण के मंच से सिर्फ अपनी पीड़ा, हताशा, निराशा और बेचैनी बयान की। यहां पेश हैं कुछ चुनिंदा अंश।   रांची : जो करना हो कर लो   दैनिक जागरण की ओर से प्रारंभ किए गए न्यायिक सुधार पर जन जागरण अभियान में शिरकत करने रांची सिविल कोर्ट परिसर आए रितेश कुमार ने अपना दुख इन शब्दों में बयान किया, हमारे चाचा मेरे घर में जबरन रह रहे हैं। हमें पैसे की सख्त जरूरत है, लेकिन वह भाड़ा भी नहीं देते। कुछ कहने पर मारपीट करते हैं। 1998 से मुकदमा चल रहा है और अभी तक कुछ नहीं हुआ। इससे उनका मनोबल और बढ़ गया है। वह कहते हैं कि जो करना है करो, हमारा कुछ नहीं होगा। न्याय मिलने में देरी से दुखी पीसी पोद्दार ने कहा कि जब जक सुनवाई के लिए समय सीमा तय नहीं होगी, न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में रहेगी। उनके अनुसार किसी भी मुकदमे के लिए अधिकतम एक वर्ष की समय सीमा तय होनी चाहिए। न्याय में देरी से ही भ्रष्टाचार और अन्य बुराईयों का जन्म होता है।   चंडीगढ़: देश की साख का भी रहे ख्याल   दैनिक जागरण के बेहतर न्याय लाएगा बदलाव जनजागरण अभियान में शिरकत करने आईं लॉ स्टूडेंट श्रुति अग्रवाल का कहना है कि चर्चित जर्मन महिला रेप कांड पर फैसला फास्ट ट्रायल पर शायद इसलिए सुनाया गया, क्योंकि इस मामले में देश की साख का सवाल था। श्रुति के मुताबिक दुष्कर्म का शिकार अन्य पीडि़तों को जल्दी इंसाफ नहीं मिल पाता। जर्मन महिला दुष्कर्म मामले में जितनी तेजी दिखाई गई उतनी ही तेजी हमें अपने मामले में भी चाहिए। एक अन्य विधि छात्र संदीप शर्मा की मानें तो एक आम आदमी को पेशी से छूट मिलने में कठिनाई का समाना करना पड़ता है वहीं राजनेता जब चाहें अपनी मर्जी से पेशी से छूट ले लेते है। इसी वजह से मामला भी सालों-साल लटकता रहता है।   जम्मू : रिक्त होते पद और बढ़ते मुकदमे   जन जागरण अभियान के संदर्भ में बातचीत करते हुए रिटायर्ड जस्टिस पवित्र सिंह ने कहा कि न्यायापालिका की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए सरकारी स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है। हाईकोर्ट में न्यायाधीश के कुल 14 पद हैं, जिनमें से पांच रिक्त हैं। इसी प्रकार निचली अदालतों में न्यायाधीश के कुल 207 पद हैं, जिनमें 41 खाली पड़े हैं। ऐसे में अदालतों पर पहले से लंबित केसों का काफी बोझ है। उस पर न्यायाधीशों की कमी से इंसाफ मिलने में देरी होती है। एडवोकेट परिमोक्ष सेठ के अनुसार जम्मू-कश्मीर में आज भी महाराजा के समय के कानून चल रहे हैं और जब तक इन कानूनों को बदला नहीं जाएगा, लोगों को इंसाफ नहीं मिलेगा। एडवोकेट अखिल खन्ना ने बताया कि वर्तमान में एक कोर्ट में रोजाना 60 से 70 मामले पेश होते हैं और एक न्यायाधीश के लिए रोजाना 70 केसों की सुनवाई करना और गवाहों को सुनना संभव नहीं है। यही कारण है कि लोगों को समय पर इंसाफ नहीं मिल पाता है। एडवोकेट राजेंद्र जम्वाल के अनुसार कई मामलों में देखा गया है कि तीन-तीन पीढि़यां न्यायालय का दरवाजा खटखटाती रहती हैं। बावजूद इसके कोई फैसला नहीं हो पाता। कुछ पुराने कानूनों की अब कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई है। कई बार अपराधी लचर कानून की आड़ में जुर्म करने के बावजूद बच निकलते हैं।         
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