देश के संप्रभु गणराज्य बनने के दो दिन बाद न्याय की यह सबसे बड़ी संस्था अस्तित्व में आई। इसका उद्घाटन समारोह संसद भवन के महारानी के कक्ष में किया गया। इसी भवन में तब भी देश की संसद लगा करती थी। तब संसद के दोनों सदनों को काउंसिल आफ स्टेट और हाउस आफ द पीपुल कहा जाता था। 1937 से 1950 के बीच 12 सालों तक फेडरल कोर्ट आफ इंडिया इसी महारानी के कक्ष में लगा करती थी। सुप्रीम कोर्ट के अस्तित्व में आने के बाद भी कई सालों तक उसका ठिकाना यही भवन बना रहा। 28 जनवरी 1950 को उद्घाटन के बाद संसद के एक हिस्से में सुप्रीम कोर्ट की सिटिंग शुरू हुई।  वर्तमान भवन में इसका स्थानांतरण 1958 में किया गया। इस भवन को इस तरह बनाया गया है जिससे देखने में किसी न्याय की तराजू का आभास होता है। भवन का मध्य खंड तराजू की मुख्य डंडी के तरह है। 1979 में सुप्रीम कोर्ट परिसर में दो नए खंड (पूर्वी और पश्चिमी खंड) शामिल किए गए। भवन के विभिन्न खंडों में कुल 15 कोर्टरूम हैं। मध्य खंड में स्थित मुख्य न्यायाधीश का कोर्ट सभी कोर्ट से बड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के 1950 के मूल संविधान में जजों की संख्या का प्रावधान किया गया था। इसके अनुसार न्याय की इस सबसे उच्च संस्था में मुख्य न्यायाधीश और सात कनिष्ठ न्यायाधीश होंगे। हालांकि इस संख्या में वृद्धि का अधिकार संसद पर छोड़ दिया गया है। शुरुआती साल में सुप्रीम कोर्ट के सभी जज अपने समक्ष आए मामलों की सुनवाई एक साथ बैठकर करते थे। समय के साथ अदालत के कामकाज में वृद्धि होने के साथ संसद ने सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने का क्रम जारी रखा। इस तरह 1950 में आठ जज की संख्या 1956 में 11, 1960 में 14, 1978 में 18 और 1986 में बढ़कर 26 हुई। न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि होने से अब वे छोटी पीठों में दो-तीन, बड़ी पीठों में पांच और जरूरत के अनुसार इससे ज्यादा की सदस्य संख्या वाली पीठों में एक साथ बैठने लगे। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही केवल अंग्रेजी में ही की जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत सुप्रीम कोर्ट नियम, 1966 द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अभ्यास और प्रक्रिया का निर्धारण किया जाता है। |