क्या है न्याय? आजाद भारत में लिया गया एक संवैधानिक प्रण। आम आदमी को दी गई वो ताकत। जिससे वो अपने बुनियादी हक करता है हासिल। वो एहसास जिससे हम इस समाज में जीते है निर्भय होकर। एक प्रबंध जो रक्षा करता है हर नैतिक अधिकार की। न्याय जो बचाता है देश को अराजकता से। न्याय जो प्रजातंत्र के सिद्धांतों को बनाता है क्रियाशील।
पर न्याय के मायने आज क्यों बदल गए हैं?
आज कोई मुकदमा अगर अदालत में जाता है, तो उम्र बस फिर तारीखों में ही गुजरती है। जमीन का केस लड़ते-लड़ते हमारी चप्पले घिस जाती हैं,  पर केस जिनसे और लंबा खिंचे, वो दलीलें नहीं घिसतीं।
कठघरे में भी देखिए तो खड़ा नजर आएगा बस आम आदमी क्यों कि अमीर आदमी तो घर बैठे ही इंसाफ का तराजू अपनी ओर झुका ले जाता है।
और आज के जमाने में न्यायालय से कुछ उम्मीद करें भी तो कैसे वो तो पुराने पोथों से चलता है। उन नियमों से, जिनका औचित्य शायद बस कुछ सदियों पहले तक ही था।
पर हम क्यों भूल रहे है, कि न्याय भी संविधान द्वारा दी गई सेवाओं में से एक है? न्याय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। और इसी के तहत सुधारक को देश की व्यवस्था सुचारु रखने का स्थान हमने खुद दिया है, ताकि आने वाले वक्त में हम एक बेहतर न्यायिक प्रणाली का लाभ उठा सकें। ताकि हम फिर गर्व से कह सकें, माय लार्ड!
बदल सकता है यह सब कुछ, अगर हम चाहे तो। न्यायिक प्रणाली को बनाया जा सकता है, आज के अनुकूल। आइये! जन जागरण के मंच से दें अपने सुझाव। आइये! सत्यमेव जयते को करें सार्थक। हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?
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