देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता। मुकदमों को निपटारा जल्द होना चाहिये। देश में हर न्यायालय की अपनी समस्या है, उसका निपटारा उसी हिसाब से होना चाहिये। सरकार को न्यायाधीश के खाली पदों की ओर भी ध्यान देना होगा। कानून अपनी जगह सही है, हर मुकदमा अगर कड़ी कानूनी प्रणाली के अंतर्गत लड़ा जाये, तो तीन माह में निपटारा संभव है। किसी कारण स्थगन लगने के बाद अगर केस की तारीख बढे़, तो अगली सुनवाई पर उस केस को प्राथमिकता देनी चाहिये, ताकि एक केस का निपटान हो। न्यायमूर्ति सुधीर नारायण (अवकाश प्राप्त) देश की 70 प्रतिशत जनता, जो गांव में रहती है उन तक न्याय सुलभ हो सके इसके लिए ठोस पहल की आवश्यकता है। गांवों में अधिकतर मामले जमीन से संबंधित होते हैं। इसे लेकर खून-खराबा भी होता है। ऐसे मामलों के निपटान के लिए एक न्यायालय की व्यवस्था होनी चाहिये। जहां जमीन से संबंधित सभी मामलों का निपटारा न्यायाधीश के माध्यम से हो। राजस्व विभाग में मुकदमों का निपटारा आईएएस अधिकारियों द्वारा किया जाता है। उन्हें वकालत का अनुभव नहीं होता, जिससे मामलों में रिवीजन, करेक्शन जैसी समस्याएं आती हैं। न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्तव (अवकाश प्राप्त) भारत की न्याय व्यवस्था सस्ती और आसानी से सुलभ है, ऐसी व्यवस्था किसी देश में नहीं। जजों के रिक्त पदों का भरा जाना सहीं है, लेकिन इसके साथ ही हमें संख्या पर नहीं गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा। सिर्फ पद भर देने से त्वरित न्याय मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसके अलावा अधिवक्ताओं को अपना स्तर सुधारना होगा। आईएम खान उपाध्यक्ष यूपी बार काउंसिल भ्रष्टाचार व्याप्त होने के कारण ऐसी बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिनके आगे न्यायाधीश भी काम नहीं कर पा रहे हैं। वादों के निपटारे के लिए उचित व्यवस्था करनी होगी, तभी त्वरित न्याय मिल सकेगा। जिला न्यायालय में लंबे समय से चल रहे मुकदमों के निपटारे के लिए हाईकोर्ट से आदेश हो जाता है कि इस मामले को 6 माह में निपटाया जाये। इससे अन्य मामलों को छोड़कर सभी उन मामलों के निपटारे में लग जाते हैं। राजेंद्र श्रीवास्तव अध्यक्ष, जिला बार एसोसिएशन न्याय प्रणाली में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये, जिससे उसी प्रदेश का न्यायाधीश या अधिवक्ता उसी प्रदेश की कोर्ट में कार्यरत न रहे। वह अन्य प्रदेशों में जाकर प्रैक्टिस करे। कुछ वर्षो बाद वह आये और अपने शहर या प्रदेश में कार्य करे। वकालत में स्थानांतरण नीति का पालन होना चाहिये। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय को ट्रांसफर आयोग की स्थापना करनी चाहिये। मुकदमों का जल्दी निपटारा नहीं होने का प्रमुख कारण स्थगन (एडजर्नमेंट) है। वादी मामलों को आगे बढ़ाने के लिए स्थगन लगवा देते हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया बाधित होती है। नरेश चंद्र राजवंशी अध्यक्ष, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार ऐसा नहीं है कि न्याय प्रक्रिया में बदलाव नहीं हो रहे हैं, लेकिन बदलावों को सकारात्मक नहीं लिया जा रहा है। निश्चय ही एक बड़े बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जब से वह वकालत कर रहे हैं, तब से उन्होंने आजतक उच्च न्यायालय को पूरी स्ट्रेंथ में काम करते नहीं देखा। त्वरित न्याय के लिए जजों के रिक्त पद भरना जरूरी है। दूसरी चीज हाईकोर्ट में 160 जजों के पद हैं और 90 जजों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। उमेश नारायण शर्मा वरिष्ठ अधिवक्ता हाईकोर्ट में 160 न्यायाधीश के पद हैं। 76 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जबकि 84 पद अभी भी रिक्त हैं। न्यायालयों में मुकदमों का लंबित होना और त्वरित न्याय नहीं मिलने का यह मुख्य कारण है। इससे निपटने के लिए सरकार को प्रयास करने होंगे। सर्विस टैक्स पर एक बार फिर से बहस की जरूरत है। सरकार तो तय करना होगा, सर्विस टैक्स किन पर और कैसे लगे।