आयेगा.. बेहतर न्याय का कल भी आयेगा
स्टाफ रिपोर्टर, इलाहाबाद
08/08/10 | Comments [0]
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दैनिक जागरण की ओर से न्यायिक सुधारों के लिए जनजागरण के तहत आयोजित फोरम में सभी ने स्वीकार किया कि कई मुद्दे ऐसे हैं जिन पर खुले दिल से विचार होना चाहिए। वक्ताओं का कहना था कि वर्तमान व्यवस्था अप्रासंगिक हो रही है लेकिन अभी उम्मीदें भी हैं। जागरण ने मंथन की शुरुआत की है। इसके परिणाम सार्थक निकलेंगे। निश्चित रूप से बेहतर न्याय का दिन भी जल्द आयेगा। कम्युनिटी हाल में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह ने स्व. पूर्णचंद्र गुप्त और स्व. नरेंद्र मोहन के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन से किया। उन्होंने कहा कि दैनिक जागरण के इस अभियान से बहुत सी बातों की जानकारी हुई है। इस अभियान के परिणाम नई विचारधारा को जन्म देंगे। विशिष्ट अतिथि अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि देश की संवैधानिक व्यवस्था के तहत तीनों शक्तियों का पृथक्करण व न्यायालय को पीडि़त पक्ष को न्याय दिलाने की व्यवस्था सही है। न्यायालय का यह भी दायित्व है कि वह प्रशासन को भी दुरुस्त करे। उन्होंने कहा कि देश की 70 फीसदी ग्रामीण जनता के विवाद राजस्व न्यायालयों में बैठे प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सुने जाते हैं जिन्हें विधि का प्रशिक्षण नही होता। वरासत दर्ज कराने के छोटे मामले भी वर्षो चलते रहते हैं। एक छोटे से मुद्दे से कई मुकदमों का जन्म हो जाता है, समय है कि राजस्व अदालतों का गठन किया जाय, जिसमें न्यायाधीश न्याय करें। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा कि दीवानी न्यायालय से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक न्यायाधीशों की नियुक्ति की भिन्न प्रक्रिया है। निचली अदालत में सैकड़ों पद खाली हैं, जहां आम जनता को प्राथमिक न्याय दिया जाता है। इस बारे में मुख्यमंत्रियों व मुख्य न्यायाधीशों का सम्मेलन हुआ लेकिन स्थिति वही है। सही सोच से ही समस्या का हल निकाला जा सकता है। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एनसी राजवंशी ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को नियुक्ति के बाद तुरन्त दूसरे प्रदेश में भेजे जाने पर बल दिया और कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार, बार कौंसिल व बार एसोसिएशन के प्रतिनिधियों की भी राय ली जानी चाहिए। कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक रखा जाय। वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा ने कहा कि सिस्टम में थोड़े बदलाव की जरूरत है। नियुक्ति प्रक्रिया दूषित है। ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे अदालतें पूरी क्षमता से काम कर सके। उन्होंने कोलेजियम सिस्टम को अंधा बांटे रेवड़ी की संज्ञा दी। श्री शर्मा ने न्यायालयों में सुविधाएं मुहैया कराने पर बल देते हुए कहा कि दाखिल होने वाले मुकदमों की जांच की कमेटी बने और दोनों पक्षों के वकीलों को आपसी सहमति का मौका दिये जाने से भी न्याय में देरी नहीं होगी। यूपी बार कौंसिल के उपाध्यक्ष आई. एम. खान ने कहा कि भारत में अन्य देशों की तुलना में न्याय का खर्च काफी सस्ता है। इस कार्य में न्यायालय, अधिवक्ता व समाज सीधे जुड़े हैं। न्यायाधीशों की तादात बढ़ाने से समस्या हल नहीं होगी। सिस्टम में बदलाव लाने की जरूरत है। जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेन्द्र श्रीवास्तव ने अदालतों की छुट्टियां घटने पर अपनी पीड़ा जाहिर की और कहा कि न्यायाधीशों की कमी पूरी की जाय। कचेहरियों की मछली बाजार जैसी हालत सुधारा जाय। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से न्यायिक कार्य न लेने की सलाह दी। अधिवक्ता सरिता सिंह ने कहा कि अदालतों में मुकदमों का दाखिला तेजी से बढ़ रहा है। जनता में जागरूकता आई है। उन्होंने मुकदमों की समय सीमा तय करने पर बल दिया। समारोह का संचालन राजीव गुप्ता ने किया। इससे पहले महाप्रबन्धक गोविन्द श्रीवास्तव ने सभी का स्वागत करते हुए बताया कि दैनिक जागरण ने राष्ट्रीय स्तर पर इस बहस की शुरुआत की है। संपादकीय प्रभारी सद्गुरु शरण ने विषय प्रवर्तन करते हुए वर्तमान न्याय व्यवस्था को अंग्रेजी शासन की देन बताते हुए तीन करोड़ मुकदमों के कतार में लगे रहने पर सवाल उठाया। धन्यवाद ज्ञापन उप समाचार संपादक हरिशंकर मिश्र ने किया। कार्यक्रम में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव प्राणेश दत्त त्रिपाठी, बार के पूर्व उपाध्यक्ष एसके गर्ग, प्रवीण शुक्ला, अशोक मेहता, प्रदीप कुमार जैसवार, स्वर्णलता सुमन, हैदर अब्बास, आशुतोष तिवारी, मुरली धर, अश्वनी मिश्र, जेबी सिंह, सीबी सिंह, आदि उपस्थित रहे।


  

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