दादा को अलॉट, पोते को मिला प्लॉट
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़
08/08/10 | Comments [0]
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यूं तो प्लॉट दादा ने आज से करीब साढ़े पांच दशक पूर्व खरीदा था व उसकी बाउंड्री भी करवा दी थी लेकिन कानूनी पेंच ऐसा फंसा कि वे ही नहीं बल्कि उनके पुत्र भी निर्माण पूरा कराने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गए। अब पोते जाकर कहीं प्लॉट पर निर्माण करवा पाएंगे। 56 वर्ष कानूनी जंग लड़ने के बाद पीडि़त पक्ष को हाईकोर्ट के निर्देश पर अब जाकर प्लॉट पर कब्जा मिल पाया है। आधी सदी से ज्यादा समय के बाद कानूनी लड़ाई जीतने वाले करतार सिंह फिलहाल दुनिया से कूच कर चुके हैं। यहीं नहीं, उनके बेटे अवतार सिंह भी स्वर्ग सिधार चुके हैं। करतार सिंह ने चंडीगढ़ प्रशासन से 1954 में दो कनाल का प्लॉट 640 रुपये 40 पैसे में खरीदा था। फिलहाल इस प्लॉट की कीमत आठ करोड़ रुपये हो चुकी है। मामले में पेचिदगी तब आई जब निर्धारित समय में प्लॉट पर निर्माण न करने की वजह से प्रशासन ने प्लॉट पर कब्जा वापस लेने का आदेश जारी कर दिया। इस दौरान कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते करतार सिंह स्वर्ग सिधार गए। उसके बाद याचिकाकर्ता स्व.करतार सिंह के पुत्र अवतार सिंह को पिता का हिस्सा अपने नाम ट्रांसफर करवाने में कागजी दिक्कत पेश आई। प्रशासन के साथ अंतिम बार याचिकाकर्ता का जो संपर्क हुआ उसमें उसे अपने पिता करतार सिंह के मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ-साथ हलफनामा जमा करवाना आवश्यक था। वह ऐसा नहीं कर पाया। इसके बाद प्रशासन ने प्लॉट का कब्जा वापस लेने के आर्डर जारी कर दिए। इस आर्डर को अवतार सिंह ने चुनौती दी थी। अवतार सिंह ने अपील में कहा था कि हार्टअटैक होने की वजह से वे प्लॉट का समय पर निर्माण नहीं करवा पाए थे। लेकिन समय पर अपील दायर नहीं करने पर अथॉरिटी ने अवतार की अपील को ठुकरा दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने 1985 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसमें कहा गया कि अन्य सहमालिकों की सहमति और ट्रांसफर के बगैर प्लॉट का निर्माण करवाना संभव नहीं था। वैसे भी बिल्डिंग प्लान से संबंधित नियम इसके निर्माण की मंजूरी को इजाजत नहीं देते। इस दौरान अवतार सिंह भी दुनिया से कूच कर गए। याचिका पर न्यायालय ने प्रशासन के कब्जे के आर्डर को खारिज कर दिया। न्यायाधीश ने अपने निर्देश में कहा कि शहर का विकास लोगों की आपसी सहमति से होता है। घरों का निर्माण भी लोगों के संपत्ति खरीदने से होता है। अपने स्तर पर शहर के विकास का कोई स्कोप नहीं है। ऐसे केस बड़े कठिन होते है जब कोई बीमारी या मृत्यु के कारण निर्माण पूरा न कर सके। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की आगे की पीढ़ी या फिर अन्य सह-मालिक प्लॉट पर निर्माण कर सकेंगे।


  

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