सैनिक छावनी के लिए अधिग्रहित जमीन का उचित मुआवजा लेने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते हुए परिवार के तीन सदस्य दुनिया छोड़ गए। उनके हक में हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया, लेकिन पूर्ण इंसाफ नसीब नहीं हुआ। इस परिवार का चौथा सदस्य भी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में है, लेकिन कानूनी लड़ाई अभी जारी है। 1979 में बठिंडा में सेना की छावनी के लिए कई गांवों की हजारों एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी। गांव गोबिंदपुरा के निवासी सुखदेव सिंह की 12 एकड़ जमीन भी इसमें शामिल थी। सरकार ने प्रति एकड़ 15 हजार रुपये मुआवजा जारी किया, लेकिन सुखदेव सिंह तथा उनकी बहनों राम रक्खी, करतार कौर व प्रताप कौर ने बठिंडा कोर्ट में प्रति एकड़ एक लाख रुपये मुआवजे का केस दायर कर दिया। 1986 में बठिंडा कोर्ट ने सुखदेव सिंह की मांग खारिज कर दी। परिवार ने हाईकोर्ट में अपील कर दी। 29 जुलाई, 1988 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मुआवजे की रकम 15 हजार से बढ़ाकर 70 हजार रुपये प्रति एकड़ कर दी और डबल बेंच ने 5 मार्च, 1991 को रकम 90 हजार रुपये प्रति एकड़ कर दी। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने 1992 में हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बावजूद सरकार ने फैसले के मुताबिक मुआवजा अदा नहीं किया। अब परिवार अब पुन: बठिंडा कोर्ट में मुआवजा लेने की लड़ाई लड़ रहा है, जहां अभी तक फैसला लंबित है। कोर्ट के 1992 के फैसले के अनुसार यदि सरकार उस समय राशि अदा करती तो उसे नौ लाख रुपये देने पड़ते, लेकिन आज की तारीख में 15 फीसदी ब्याज के साथ यह रकम करीब 50 लाख रुपये होती है।