कानून के अंधेरे गलियारों में जहां कुछ लोग गुम होकर रह जाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो इस राह को रोशन करने के लिए खुद ही मशाल थाम लेते हैं। ऐसा ही कठुआ की नय्यर शर्मा ने भी किया। अपने दादा व उनके बाद पिता को कानून की अंधेरी गलियों में भटकता देख उन्होंने खुद कानून की मशाल हाथ में उठाई और आज अपने परिवार ही नहीं बल्कि उनके जैसे दर्जनों परिवारों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हैं। नय्यर शर्मा का परिवार 1947 में बटवारे के दौरान गुलाम कश्मीर के मीरपुर जिले की कोटली तहसील से जान बचाकर जम्मू पहुंचा था। उस समय सरकार ने इन रिफ्यूजियों को यहां बसाने के लिए सरकारी जमीन अलाट की। नय्यर के दादा देवी राम शर्मा के हिस्से भी कठुआ के चन ग्राम में 47 कनाल 14 मरला जमीन आई। उनके बेटे ओम प्रकाश शर्मा ने कुछ देर बाद इसी जगह 14 कनाल जमीन और खरीदी। वर्ष 1982 में कठुआ के कुछ भू-माफिया सदस्यों ने राजस्व अधिकारियों के साथ मिलकर इनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। देवी राम ने अपनी जमीन वापस हासिल करने के लिए हर तरफ हाथ-पांव मारे, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इस दौरान उनका निधन हो गया जिसके बाद नय्यर के पिता ओम प्रकाश शर्मा ने इस कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाया। उस समय नय्यर दस साल की थी, लेकिन जमीनी केस के चलते पूरा घर अस्त-व्यस्त हो गया। नय्यर के परिवार में हर वक्त इसी केस को लेकर बात होती थी। अपने पिता को कानूनी गलियारों में भटकता देख नय्यर ने खुद ही वकालत करने का फैसला किया। नय्यर के पिता ओम प्रकाश भी अदालतों व वकीलों के दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर इतने हताश हो चुके थे कि उन्होंने भी अपनी बेटी को वकील बनाने की ठान ली। वर्ष 2009 में नय्यर ने जम्मू यूनिवर्सिटी से एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की और आज कठुआ में ही प्रैक्टिस कर रही हैं। नय्यर शर्मा आज केवल अपने दादा द्वारा किए गए केस को ही नहीं लड़ रही, बल्कि उन रिफ्यूजियों का भी मुफ्त केस लड़ रही हैं जो उनकी तरह अपनी जमीन को वापस हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। नय्यर व उनके पिता ओम प्रकाश ने ठान ली है कि वह राजस्व कानूनों में ही परिपूर्ण होंगी, ताकि भविष्य में फिर कोई देवी राम इंसाफ की आस लेकर दम न तोड़ दे।