13 वर्ष बाद भी नहीं मिला इंटर का सर्टिफिकेट
निर्भय सिंह, पटना
08/07/10 | Comments [0]
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जीनियर बनने की ख्वाइश लिये शिवकुमार नेपाल से बिहार आया था इंटरमीडिएट करने के लिये। लेकिन यहां आकर इंटरमीडिएट काउंसिल के फेर में ऐसा फंसा कि 13 वर्षो से विभिन्न अदालतों के चक्कर लगाने के बाद इंटरमीडिएट का सर्टिफिकेट मिलना तो दूर फर्जी सर्टिफिकेट बनाने के मामले में विजिलेंस के फेर में जरूर फंस गया। किसी तरह हाईकोर्ट से उसे इस मामले में अग्रिम जमानत मिल पायी है लेकिन सर्टिफिकेट का मामला अभी भी अधर में है। फिर भी अदालतों से लेकर विजिलेंस की जांच तक उसके हौसले को नहीं तोड़ पायी है, हर तरफ यही जुमला उछल रहा है कि जब उमर ही बीत गयी तो इस सर्टिफिकेट का क्या फायदा लेकिन शिवकुमार डटा है न्याय की आस में। शिव कुमार नेपाल के जनकपुर से एनआरआई बन कर बिहार आया था अच्छी पढ़ाई करने। लेकिन यहां घिर गया मुकदमों के चक्रव्यूह में। 1992-94 सत्र में उसने इंटरमीडिएट से आई.एससी. की परीक्षा पास की। फिर उसने 1994 में हरियाणा के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कालेज में नामांकन लिया। दो सेमेस्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसका इंटर का सर्टिफिकेट वेरीफिकेशन के लिए इंटरमीडिएट काउंसिल आया। इंटरमीडिएट के बाबुओं ने अच्छा आसामी देखते हुए कहा जैसा कहें वैसा करो पर वह तैयार नहीं हुआ और शुरू हो गया उसका बुरा दिन। बिहार इंटरमीडिएट काउंसिल के बाबुओं से तंग आकर शिव कुमार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रिजल्ट दिलाने की फरियाद की। मामले की सुनवाई शुरू हुई और इंटरमीडिएट के अधिकारियों को मिला सफर करने का अच्छा बहाना। दो वर्षो तक केस खींचने एवं पानी की तरह पैसा बहाने के बाद याद आया कि यह मामला पटना हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार का है। तब वह मामला 1999 में पटना उच्च न्यायालय आया। पटना हाईकोर्ट की एकलपीठ ने कहा अब रिजल्ट लेने से क्या फायदा बेहतर होगा 20-25 लाख रुपया क्षतिपूर्ति ले लो, पर शिव कुमार तैयार नहीं हुआ। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने मामले को मेरिट नहीं रहने के आधार पर खारिज कर दिया। उसने एकलपीठ के आदेश को अपील (एलपीए) में चुनौती दी। मामले को बढ़ता देख इंटरमीडिएट ने 7 अक्टूबर 2006 में कोतवाली में एफआईआर दर्ज करा दिया, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि काउंसिल के कुछ कर्मी एवं बाहरी लोग मिलकर फर्जी डिग्री के कारोबार में लगे हैं। इसी दौरान शिव कुमार को भी अभियुक्त बना दिया गया। बाद में यह मामला विजिलेंस में स्थानांतरित होकर चला आया। विजिलेंस ने 12 लोगों को फर्जी डिग्री का अभियुक्त बना डाला। विजिलेंस ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि 92-94 के बैच से मधेपुरा इंटर कालेज से आई.एससी. करने वाला शिव कुमार नहीं शैलेश कुमार मंडल था। शैलेश कुमार मंडल की तहकीकात की गयी, तो पता चला कि उसने कभी इंटर की पढ़ाई की ही नहीं। अत: आई.एससी. करना उसके बस की बात नहीं। विजिलेंस की जांच यहां भी नहीं रुकी उसने एक दूसरे लड़के की तलाश कर ली, जिसका नाम भुमनेश भक्त था। विजिलेंस के 300 पृष्ठ की जांच से अभी तक यह नहीं सिद्ध हो पाया कि भुमनेश का आखिर ठौर-ठिकाना क्या है। विजिलेंस ने अपनी जांच में यह जरूर पता कर लिया कि इंटरमीडिएट काउंसिल के करीब आधा दर्जन कर्मियों का चरित्र संदेहास्पद है। उधर पटना हाई कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने पिछले ही वर्ष एलपीए संख्या 601/2009 को निष्पादित कर दिया। हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार इस वर्ष के अप्रैल तक सही तथ्यों का पता लगाकर याचिकाकर्ता को अंकपत्र दिलवाने का आदेश दिया गया था। दरअसल हाईकोर्ट ने 23 दिसम्बर 2009 को ही आदेश जारी किया था। विजिलेंस की अदालत अभी तक शिव कुमार को रिजल्ट नहीं दिलवा पायी और उस पर फर्जी सर्टिफिकेट बना लेने का आरोप भी लगा दिया गया। विजिलेंस ने उस पर एफआईआर दर्ज करवा दी। इस धोखाधड़ी के मामले से छुटकारे के लिए उसे फिर से अदालत की शरण में आना पड़ा। निचली अदालत ने उसे जमानत तक नहीं दी। बाद में हाई कोर्ट से उसे 23 मार्च 2010 को अग्रिम जमानत मिली। हालांकि रिजल्ट का मामला अभी तक पटना के विजिलेंस कोर्ट में स्पेशल केस नं. 53 लंबित है। अब शिव कुमार रिजल्ट लेने के मामले के साथ आपराधिक मामलों से भी लड़ रहा है। सवाल यह भी है कि आखिर वह अब रिजल्ट लेकर करेगा भी तो क्या। 


  

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