और न्याय दफन होने से बच गया
अनिल कुमार, पटना सिटी
08/07/10 | Comments [0]
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न्याय दफन होने से बच गया। पटना उच्च न्यायालय की दखल के बाद विधवा को न्याय की रोशनी दिखने लगी है। मुख्य न्यायाधीश जम्मू-कश्मीर वरीन घोष (तत्कालीन न्यायाधीश पटना उच्च न्यायालय) की सूझबूझ से अपराधी, भू-माफिया और खाकीवर्दी वाली तिकड़ी की साजिश नंगी हो चुकी है और पीडि़ता का मामला न्याय की राह आ गया। गया में रमना रोड में रहने वाली विधवा राजकुमारी देवी की लाखों की जमीन को भू-माफिया ने षड्यंत्र रचकर कब्जा करना चाहा। पुलिस की मिलीभगत से विधवा के पुत्र को जेल भेज दिया गया। विधवा के पोते तन्मय गुप्ता को स्कूल से लौटने हुए अपहृत भी करा लिया गया। 21 नवम्बर 2003 की सुबह विधवा राजकुमारी के सामने उसके पुत्र अमरेश को टाटा सूमो सवार पांच लोगों, मदन तिवारी, मोहम्मद मोइद, शंकर प्रसाद, कन्हैया प्रसाद तथा संजय प्रसाद ने भून डाला। पांचों पकड़े भी गये। पर्यवेक्षण रिपोर्ट में दो लोगों मोहम्मद मोइद तथा शंकर प्रसाद सुलतानिया के विरुद्ध मामला सही माना गया। जांच अधिकारी ने दो और एक अज्ञात के विरुद्ध 5 फरवरी 2004 को चार्जशीट दाखिल कर दी। विधवा ने ट्रायल में गड़बडि़यां व रसूख वालों की पुलिस से साठ-गांठ का आरोप लगाया। लेकिन घटना में नया मोड़ तब आया जब मामले की तफ्तीश में लगे पुलिस अधिकारी ने 11 दिसम्बर 2004 को केस डायरी में अज्ञात अभियुक्त के रूप में वादी के अधिवक्ता रतन कुमार सिंह को ही अमरेश का हत्यारा बताया। वादी राजकुमार देवी द्वारा सौंपे गये आवदेन में आरोप है कि केस डायरी के दो पन्ने बदलकर दो नये गवाहों राजू एवं अशोक कुमार के माध्यम से अधिवक्ता रतन को ही अभियुक्त बना दिया गया है। ये वही अधिवक्ता हैं जो वादी की पैरवी करते आ रहे हैं। पुलिस ने वादी के अधिवक्ता रतन कुमार सिंह को भारी सुरक्षा में जेल भी भेजा। पांच माह बाद वे जमानत पर रिहा हुये। इस मामले में पीडि़त विधवा तथा बेकसूर अधिवक्ता को न्याय दिलाने में पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राशिद इजहार की भूमिका भी अहम है। राजकुमारी देवी ने 2 मई 2007 को पूरे ट्रायल व घटनाक्रम का हवाला देते हुए पटना हाईकोर्ट में आवेदन देकर न्याय की गुहार लगायी। जिसमें पटना हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति वरीन घोष ने जांच की। उन्होंने स्पष्ट लिखा कि सिविल पुलिस केस संख्या 303/03 में सही रूप से जांच नहीं हुई है। नाइंसाफी और अन्याय की आशंका दिखती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गया के फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश विजयकांत झा के विरुद्ध अभिलेख की हेराफेरी के मामले में कार्रवाई हो और दोनों ट्रायल गया शहर से बाहर भेजकर नया ट्रायल शुरू किया जाये। इस आधार पर पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पटना जिला जज के न्यायालय में मामले की सुनवाई नये सिरे से 18 मई 09 से शुरू की गयी है।


  

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