तारीख पर आइए और तारीख लेकर जाइए
मदन शर्मा, जहानाबाद
08/07/10 | Comments [0]
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कहते हैं हिसाब-किताब कभी नहीं मरता। भारतीय न्यायिक व्यवस्था मुकदमों को आसानी से दफन भी नहीं होने देती। वे भी लंबी उम्र का वरदान प्राप्त किये रहते हैं। मुकदमे नहीं मरते मगर दुश्मनी पलती रहती है। इसकी प्रत्येक तारीख राख में दबे वैमनस्य की आग को जीवित रखती है। न्यायालीय परिसर में एक कहावत जोरों से प्रचलित है-तारीख पर आईए और तारीख लेकर जाईए। यही हाल घोसी प्रखंड के उबेर गांव निवासी प्रभु यादव द्वारा दर्ज मारपीट के मुकदमे के अभियुक्तों की है। इस मुकदमे की राम कहानी अजीब सी है। एफआईआर एवं केस डायरी रिकार्ड से गुम है। 22 न्यायिक अधिकारी भी इस साधारण मुकदमे में माथापच्ची कर चुके हैं। इस मुकदमे की अधिकतम सजा तीन वर्ष है। लेकिन इसके अभियुक्त लगातार 36 वर्षो तक जहानाबाद और गया के न्यायालयों का चक्कर काट चुके हैं। अपनी आयु पूरी कर सूचक प्रभु यादव कब के परलोक सिधार गये लेकिन उनका मुकदमा मरने का नाम नहीं ले रहा है। इतना ही नहीं आधे अभियुक्त तथा गवाह भी दुनिया को छोड़ गये। न्यायालयों का चक्कर काट थक चुके शेष बचे अभियुक्तों ने भी पैरवी छोड़ दी। प्रभु यादव द्वारा 18 जून 1974 को घोसी थाना कांड संख्या 22/06/74 धारा 148,323,324/34 के तहत गांव के ही सुरेश यादव, श्रीराम यादव, रामकृत यादव, ब्रह्मदेव यादव, मोही यादव तथा दुखन यादव के खिलाफ मारपीट का मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में रामवरत यादव, सोही यादव,रमेशर यादव,रामवृक्ष यादव तथा रामावतार यादव गवाह थे। पुलिस द्वारा 12/09/74 को न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया। उस समय जहानाबाद गया जिले का अनुमंडल था, परिणामस्वरूप सेसन से संबंधित मामलों की सुनवाई गया में ही होती थी। अभियुक्तों एवं सूचक की तरह इस मुकदमे ने भी कई न्यायालयों का चक्कर काटा। न्यायालय द्वारा यह उल्लेख करते हुए दौरा सिपुर्द किया गया कि वर्तमान स्थिति में रिकार्ड में केस डायरी तथा एफआईआर भी उपलब्ध नहीं है। सुनवाई के लिए गया के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में संचिका गयी लेकिन उन्होंने यह कहते हुए उसे वहां के सीजेएम को संचिका वापस कर दी कि जमानतीय धारा रहने के कारण ऊपरी न्यायालय में ऐसे मामले की सुनवाई नहीं हो सकती है। फिर यह केस रिकार्ड पुन: गया से जहानाबाद
स्थित सीजेएम के न्यायालय में पहुंच गया और शुरू हो गया अभियुक्तों को तारीख पर आने-जाने का सिलसिला। आने-जाने के क्रम में ही पैरवी छूटी, परिणामस्वरूप दुखन यादव, श्रीराम यादव तथा सुरेश यादव को तकरीबन दो महीने तक जेल में रहना पड़ा। जबकि रामकृत यादव भी एक पखवारे के लिए जेल गये। आते-जाते अभियुक्त ब्रह्मदेव यादव,मोही यादव तथा दुखन यादव परलोक सिधार गये जबकि गवाह सोही यादव,रमेशर यादव तथा रामवृक्ष यादव की भी मौत हो गयी। अभियुक्त सुरेश यादव की उम्र भी 65 वर्ष से अधिक हो चुकी है परिणामस्वरूप वे तारीख पर आने जाने लायक भी नहीं हैं। लेकिन मुकदमा है कि अभी चल रहा है।


  

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