बुनियाद पुरखों की हो, ढांचा बदल दीजिए
प्रवीण प्रियदर्शी, रांची
08/06/10 | Comments [0]
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नए जमाने की नई पीढ़ी तेज रफ्तार जरूर दौड़ रही, पर अतीत की बुनियाद से बंधी हुई। देश में न्यायिक सुधार पर नई पीढ़ी के विचार मौजूदा व्यवस्था से थोड़े अलग-थलग जरूर हैं, पर देश के न्यायिक ढांचे से अलग नहीं। हां, यह पीढ़ी इसमें सुधार की गुंजाइश जरूर देखती है। यानी, जो महल बनना है उसमें थोड़े सुधार की जरूरत भर। तभी तो विधि के छात्र रोहित कुमार न्यायिक सुधार पर अपना पेपर प्रेजेंटेशन देते हुए शुरूआत ही पंडित जवाहर लाल नेहरू से करते हैं। उन्होंने 1955 में पंजाब उच्च न्यायालय भवन के उद्घाटन समारोह में कहा था कि देश में न्याय सरल, त्वरित और सस्ता होना चाहिए। न्यायिक सुधार को ले दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान में गुरुवार को छोटानागपुर लॉ कालेज, रांची में नई पीढ़ी बहुत जोश के साथ अपनी बातें रख रही थी। व्यवस्था में सुधार का हौसला और यह भी कि वे अपने पुरखों की बात ही दुहरा रहे। न्याय सस्ता, सरल और सर्वसुलभ हो। छात्रों ने पेपर प्रेजेंटेशन के क्रम में न्याय की लागत कम करने और समयबद्ध न्याय के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाने की पैरवी की। रोहित ने मुकदमों के त्वरित निष्पादन के लिए न्यायालय की संरचना में परिवर्तन के साथ ही न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया। जांच एजेंसी को त्वरित कार्य करने के लिए समय सीमा में बंधने की सलाह दी। विधि की छात्रा आयशा सिंह सरदार ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि प्राकृतिक न्याय के प्रति जन जागृति जरूरी है। जांच एजेंसी के काम करने के ढंग में तो परिवर्तन हो ही, न्यायालयों की संख्या भी बढ़ाई जाए। आयशा ने पर्यावरण की अनदेखी और इसके प्रति संवेदनहीनता प्रदर्शित करने वालों के खिलाफ कड़े कानून और दंडात्मक प्रावधान करने का सुझाव दिया। उन्होंने वकीलों के लिए सरकार से भत्ता निर्धारित करने का सुझाव भी दिया। नीरज कुमार ने भी न्यायाधीशों की कमी की ओर ध्यान आकृष्ट किया। साथ ही अनावश्यक मुकदमेबाजी से लोगों को बचाने के लिए जांच एजेंसी की भूमिका फिर से तय करने की जरूरत बताई। वहीं कई कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल मुकदमे में अड़ंगेबाजी के लिए किए जाने की चर्चा करते हुए ऐसे प्रावधानों में संशोधन की बात कही। ऋषि कुमार ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया की जटिलता के कारण लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। कई बार गवाह दबाव में या तो होस्टाइल हो जाते हैं या प्रक्रिया में ही मर जाते हैं। ऐसे लोगों को प्रश्रय देते हुए गवाही की प्रक्रिया सरल बनाई जानी चाहिए।


  

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