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वाद मुक्त गांव बनाने को दिया जाए प्रोत्साहन

जस्टिस भवानी सिंह
न्यायिक सुधार से पहले संविधान में संशोधन जरूरी
डा. एसके वर्मा, अधिवक्ता झारखंड उच्च न्यायालय
न्याय व्यवस्था का होना दुनिया के किसी भी देश में स्वच्छता, ईमानदारी व मानव समाज को बचाए रखने के लिए जरूरी है। हमारे देश की न्याय व्यवस्था धर्म से जुड़ी रही है, लाचार व्यक्ति को भी यह दृढ़ता से प्रदान की गई है। राजाओं ने भी न्याय की गरिमा को अक्षुण्ण रखने के लिए राज परिवार के सदस्यों को भी दंडित करने में कोताही नहीं बरती।
न्यायिक प्रक्रिया के नवीनीकरण की आवश्यकता
राजेश कुमार शुक्ल, प्रवक्ता, झारखंड बार कौंसिल
नियमों का पालन करते हुए विधि का सही प्रकार से कार्यान्वयन आवश्यक है इसके लिए बनाए गए दीवानी न्यायिक प्रक्रिया 1908, आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया 1973 एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1972, बहुत पुराने एवं बहुत पेचीदा हैं। इनके सरलीकरण एवं नवीनीकरण की आवश्यकता है। अन्य क्षेत्रों में जिस प्रकार नवीनतम तकनीकों का प्रयोग कर तेज प्रक्रिया अपनायी जा रही है उसी तरह न्यायिक प्रक्रिया में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
न्यायिक सुधारों से ही बदल सकती है तस्वीर
जानकी सूर्या, उपाध्यक्ष हाईकोर्ट बार नैनीताल
भारतीय न्याय व्यवस्था जिसे हम हमारी न्याय व्यवस्था भी कहते हैं, पूर्ण रूप से हमारे संविधान एवं लोकतंत्र की संरक्षक के रूप में कार्य करती है। प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है। सरकार के अन्य अंगों की तुलना में आज भी न्यायपालिका सर्वोत्तम है तथा उस पर ही लोगों को सर्वाधिक विश्वास है। हमारी न्याय व्यवस्था संविधान और संवैधानिक कानूनों से चलती है।
मजबूत कानून से ही रुकेगी ऑनर किलिंग
शक्ति सिंह एडवोकेट, सदस्य, इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट
इज्जत के नाम पर हर साल सैकड़ों हत्याएं हो रही हैं। उत्तरी भारत में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब में आए दिन ऑनर किलिंग की घटनाएं सामने आ रही हैं। अकेले हरियाणा में पिछले दो-तीन सालों के भीतर ऑनर किलिंग के 30 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जबकि एक स्वतंत्र देश में कानून के दायरे में विवाह करनेवाले लोगों की हत्या अथवा उन पर जुल्म करने की किसी को अनुमति नहीं है।
दिवास्‍वप्‍न है त्‍वरित व निष्‍पक्ष न्‍याय
राजीव गुप्‍ता, अधिवक्‍ता इलाहाबाद हाईकोर्ट
अब से तीन-चार दशक पहले न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी का अंतर कुछ इस प्रकार का बताया जाता था कि यदि न्यायिक अधिकारी शाम को अपने घर वापस आने पर आम की टोकरी देखता था तो पूछता था कि 'क्या भाव आये' जबकि प्रशासनिक अधिकारी पूछता था कि 'कौन लाया'।
न्याय व्यवस्था का इतिहास
राजनाथ सिंह ''सूर्य''
ऐसा माना जाता है और प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख भी है कि जब समाज में धर्मानुकूल आचरण अर्थात् कर्तव्य पालन का क्षरण होने लगा तब ब्रह्मा ने मनु से राजा बनकर धर्म के विपरीत आचरण को नियंत्रित करने का प्रस्ताव किया, जिसे उन्होंने अनमने भाव से स्वीकार किया। यहां से न्याय व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ। भारत में न्याय प्रक्रिया अनादि काल से चली आ रही है। सर्वोच्च न्यायालय के रूप में राजा और स्थानीय अदालत के रूप में पंचायतों की सक्रियता का उल्लेख वेदों तक में मिलता है।
न्याय हो..और दिखे भी
प्रो. योगेश्वर तिवारी
न्यायिक सुधार पर हो रही बहस इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हमारी न्यायिक प्रक्रिया में कुछ विकृतियां या विसंगतियां आ गयी है और जिन्हें दूर करने की त्वरित आवश्यकता है। न्याय की संपूर्ण प्रक्रिया में न्यायाधीश, पीडि़त पक्ष, विरोधी पक्ष एवं न्यायिक अभिकर्ता हैं। इन चारो स्तंभों से मिलकर हमारी न्यायिक प्रक्रिया सर्वोच्च रूप लेती है। न्यायिक सुधारों के लिये आवश्यक है कि सर्वप्रथम न्यायाधीश की योग्यता एवं उनकी कर्तव्यनिष्ठा को परखा जाय।
पुलिस सुधरे तो सुधर जाएगी न्याय व्यवस्था

हमारी न्यायिक प्रक्रिया का दारोमदार काफी हद तक पुलिस पर टिका है। ज्यादातर मामलों में पुलिस द्वारा जांच कार्य में की जाने वाली अनावश्यक देरी भी न्याय में देरी का कारण बनती है। अगर अदालत में केस देर से पहंुचेगा तो देर से ही शुरू होगा। पुलिस अक्सर वर्षो तक अपराधियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं करती है। ऐसा करने से न्याय प्रक्रिया लंबी खिंचती है। न्याय प्रक्रिया को सुधारने के लिए सबसे पहले राजधानी की पुलिस में सुधार जरूरी है।
प्रशासनिक अफसरों को न्यायिक कार्यो से मुक्त किया जाए

न्याय में देरी की एक वजह प्रशासनिक अफसरों को न्यायिक कार्यो से जोड़ना है। न्यायपालिका में सुधारों की गति तेज होनी चाहिए और लंबित मुकदमों का समयबद्ध तरीके से निस्तारण होना चाहिए, तभी मुकदमों के अंबार से अदालतें मुक्त हो सकेंगी।
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