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भूमि एक डिसमिल, समय 32 साल, फैसला लंबित
जस्टिस डिले, जस्टिस डिनायड यानी देर होने से न्याय नहीं मिलता है। ये बातें न्याय की दुनिया में वकील बार-बार दोहराते हैं। लेकिन समाधान का रास्ता मुश्किल से दिखता है। गया के मुंसिफ-3 की अदालत में ऐसा ही एक मामला लंबित है। एक डिसमिल भूमि के लिए 32 सालों से दोनों पक्ष कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। मुकदमे की फाइल कई न्यायकर्ताओं के टेबुल से गुजर चुकी है। दलील देने वाले चार अधिवक्ताओं का निधन भी हो चुका है।
सरकार को भी न्याय में देरी
यह सरकार की पीड़ा है। उसे भी समय पर न्याय नहीं मिल रहा। इसकी टकटकी में वह भी वर्षो गुजरता है। बिहार सरकार का खजाना लूटा गया। वह 14 साल से लुटेरों की अंतिम सजा के इंतजार में है। ऐसा कब होगा-कोई बताने की स्थिति में नहीं है। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके लाल ने चारा घोटाला के मामले (आरसी 20 ए/96) की सुनवाई करते हुए एक दिन खीझ कर कहा था-इस मुकदमे को विशेष अदालत से निपटाने में कम-से-कम पांच हजार कार्य दिवस लगेंगे।
समय पर नहीं मिला समय और बीत गया समय
न्याय के लिए संघर्ष कर रहे सूरज पाल को दो दशक से अधिक की जद्दोजहद के बाद भी न्याय की रोशनी नहीं मिल पाई। बीस साल बाद अदालत में उसके मामले की सुनवाई का नंबर आया पर उसमें अदालत ने फैसला दिया कि याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी जा सकती क्योंकि समय ज्यादा हो चुका है।
समय पर नहीं मिला समय और बीत गया समय
न्याय के लिए संघर्ष कर रहे सूरज पाल को दो दशक से अधिक की जद्दोजहद के बाद भी न्याय की रोशनी नहीं मिल पाई। बीस साल बाद अदालत में उसके मामले की सुनवाई का नंबर आया पर उसमें अदालत ने फैसला दिया कि याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी जा सकती क्योंकि समय ज्यादा हो चुका है।
मामले निपटाने में हिमाचल हाईकोर्ट सबसे आगे
मात्र एक संकल्प ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय को देश में अग्रणी कतार में खड़ा कर दिया है। देश भर के सभी न्यायालय विभिन्न प्रकार के मुकदमों के बोझ तले दबे हैं। ठीक ऐसे समय में जब लंबित मामलों के निपटारे को लेकर कहीं से भी उम्मीद की लौ नजर नहीं आ रही, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने आशाओं के दीप जला कर दिखाए हैं। इन्हीं दीपकों की लौ में चमक रहे हैं ये आंकड़े जो दर्शाते हैं कि कैसे हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय लंबित मामले निपटाने में केरल को पछाड़ कर अव्वल हो गया।
बेनूरी पर कहीं रो रही है नरगिस
नरगिस अब अदालत नहीं जाती। अपहरण कर बलात्कार और अश्लील तस्वीरें उतारने के मुल्जिमों को 30 बरस से सजा दिलाने की नाकाम कोशिश ने उसे हरा दिया है। खुद से हुए खौफनाक अपराध के पांच गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए उसने हर उस दरवाजे पर दस्तक दी जहां से उसे न्याय की उम्मीद थी। अदालत की फाइलों से गुनाह के कुछ सबूत गायब हो चुके हैं और मुल्जिम खुलेआम बाहर घूम रहे हैं।
जिला प्रशासन से हारा सुप्रीम कोर्ट
इसे सिस्टम की खामी कहें या कुछ और, न्याय मिलने के बाद भी उसे पाने के लिए एक व्यक्ति सालों से इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस निर्णय को लागू करने के लिए 60 दिन का समय निर्धारित किया वह 7300 दिनों में भी नहीं हो पाया। प्रार्थी कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद अब वित्त आयुक्त कार्यालय के चक्कर काट रहा है।
झारखंड में केस डिस्पोजल रेट काफी कम
पटना हाईकोर्ट ने रांची बेंच का गठन छह मार्च 1972 में किया था। संयुक्त बिहार में आदिवासी बहुल क्षेत्र की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान देने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया था। 15 नवंबर 2000 में झारखंड के अस्तित्व में आने के साथ ही पटना हाईकोर्ट का यह बेंच झारखंड उच्च न्यायालय के रूप में अस्तित्व में आया। फिलहाल झारखंड हाईकोर्ट में जज के कुल 20 पद हैं, जबकि कार्यरत जज की संख्या मात्र दस है।
इन काली रातों का मुआवजा नहीं
ठीक है कि हम पर आरोप है। इसलिए हम जेल में बंद हैं, लेकिन यदि कल हम बाइज्जत बरी कर दिये गए तो? तब इन सलाखों के भीतर गुजारे गए 18 महीनों का मुआवजा कौन देगा? मेरे साथ मेरी बच्ची भी इसी चहारदीवारी के बीच रह रही है। उसके बचपन का मुआवजा कौन देगा? यह वो सवाल है जिसका उपाय फिलहाल न्याय व्यवस्था के पास तो नहीं है। इसीलिए विधिक क्षेत्र के धुरंधर भी इससे कतराकर निकल जाते हैं।
वैकल्पिक तरीकों पर देना होगा जोर
लंबित मुकदमे से निजात पाने के लिए किसी एक तकनीक का सहारा लेना पर्याप्त नहीं होगा, एक ओर जहां जजों एवं न्यायिक पदाधिकारियों के रिक्त पदों को तुरंत भरने की आवश्यकता है वहीं ए जैसे मुकदमे के लिए अलग-अलग केस फाइल करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। वकील एवं जज मुकदमे का होम वर्क कर कोर्ट आयें ताकि अनावश्यक रूप से मुकदमे में समय नहीं लिया जाए।
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