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भ्रष्टाचार है त्वरित न्याय में सबसे बड़ी बाधा
आज बहुत से मामले अदालतों में लंबित पड़े हैं और लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार है। कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में आयोजित जन जागरण फोरम में वक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई। इस मौके पर वक्ताओं ने न्याय में देरी के लिए अलग-अलग कारण प्रस्तुत करते हुए दैनिक जागरण के जन जागरण अभियान को न्यायिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम बताया।
जज-वकील आए-गए चक्रधारी सिंह कोर्ट में
एक सच्ची कहानी चक्रधारी सिंह की। पेशे से वकील या जज नहीं। पर, कोर्ट से उनका बहुत गहरा रिश्ता रहा है। उनकी उम्र 83 साल हो गई है, फिर भी रिटायर नहीं हुए हैं। दरअसल, मामला जुड़ा है एक मुकदमे से। चक्रधारी ने भइयादी (गोतिया-रिश्तेदार) बंटवारे को लेकर 1962 में पार्टिशन सूट (44/1962) दाखिल किया था। तब उम्र थी 35 साल। आज 83 साल के हो चुके हैं, पर केस का कोई फैसला नहीं हो सका है।
देरी से मिला न्याय, न्याय नहीं
देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता। मुकदमों को निपटारा जल्द होना चाहिये। देश में हर न्यायालय की अपनी समस्या है, उसका निपटारा उसी हिसाब से होना चाहिये। सरकार को न्यायाधीश के खाली पदों की ओर भी ध्यान देना होगा। कानून अपनी जगह सही है, हर मुकदमा अगर कड़ी कानूनी प्रणाली के अंतर्गत लड़ा जाये, तो तीन माह में निपटारा संभव है। किसी कारण स्थगन लगने के बाद अगर केस की तारीख बढे़, तो अगली सुनवाई पर उस केस को प्राथमिकता देनी चाहिये, ताकि एक केस का निपटान हो।
आयेगा.. बेहतर न्याय का कल भी आयेगा
दैनिक जागरण की ओर से न्यायिक सुधारों के लिए जनजागरण के तहत आयोजित फोरम में सभी ने स्वीकार किया कि कई मुद्दे ऐसे हैं जिन पर खुले दिल से विचार होना चाहिए। वक्ताओं का कहना था कि वर्तमान व्यवस्था अप्रासंगिक हो रही है लेकिन अभी उम्मीदें भी हैं। जागरण ने मंथन की शुरुआत की है। इसके परिणाम सार्थक निकलेंगे। निश्चित रूप से बेहतर न्याय का दिन भी जल्द आयेगा।
न्यायिक सुधार के लिए खुद को बदलें
दिनोंदिन बढ़ते मुकदमों के बोझ से कराहती भारतीय न्यायिक व्यवस्था टकटकी लगाये सुधारों की संजीवनी की बाट जोह रही है। नागरिकों को सस्ता, सुलभ और त्वरित न्याय मुहैया कराने की जिद्दोजहद के बीच मुकदमों का चरित्र परिवर्तित हुआ है, उनकी नवैयत बदली है। मुकदमों का अम्बार बढ़ाने के लिए सिर्फ वे जरूरतमंद और मजलूम ही जिम्मेदार नहीं हैं जो अपने अस्तित्व पर आये संकट से निपटने के लिए अदालत की कुंडी खटखटाते हैं।
अदालतें भी नहीं दिला सकीं फ्री पास
कैट व पटना हाईकोर्ट भी रेलवे इंस्पेक्टर के पद से सेवानिवृत हुए कपिलदेव शर्मा को फ्री फ‌र्स्ट क्लास पास नहीं दिला सका। अदालती आदेश ले अधिकारियों के चक्कर लगाने का सिलसिला फिलहाल थमा नहीं है।
वसीयत ने रुलाया, दो दशक गंवाए
वसीयत जैसा साधारण मामला और 21 साल से न्याय की लड़ाई। अंतिम फैसले का अभी इंतजार है। जिला कचहरी से होते हुए केस हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय कर गया। गौर करें तो गुरदासपुर के मोहल्ला रूलिया राम कालोनी की निवासी अविवाहित राज मोहनी ने अपना कोई निकटतम वारिस न होने के कारण 2 अप्रैल 1985 को अपनी वसीयत रेडक्रास सोसाइटी गुरदासपुर के नाम पर तैयार की।
दादा को अलॉट, पोते को मिला प्लॉट
यूं तो प्लॉट दादा ने आज से करीब साढ़े पांच दशक पूर्व खरीदा था व उसकी बाउंड्री भी करवा दी थी लेकिन कानूनी पेंच ऐसा फंसा कि वे ही नहीं बल्कि उनके पुत्र भी निर्माण पूरा कराने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गए। अब पोते जाकर कहीं प्लॉट पर निर्माण करवा पाएंगे। 56 वर्ष कानूनी जंग लड़ने के बाद पीडि़त पक्ष को हाईकोर्ट के निर्देश पर अब जाकर प्लॉट पर कब्जा मिल पाया है।
24 साल से नहीं मिली तारीख
एक नहीं, दो नहीं, पूरे 24 बरस बीत गए, लेकिन तारीख नहीं मिली। तारीख कब मिलेगी इस आस में दोनों पक्षों के लोगों की आंखें पथरा गई हैं, लेकिन हाईकोर्ट से तारीख नहीं मिली। सबसे अधिक पीड़ा उसे हो रही है, जो हिसार के सिविल कोर्ट से लगभग 27 वर्ष पूर्व केस जीत कर भी आज हाईकोर्ट से न्याय की आस में दिन गिन रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र बेपरवाह
सैनिक छावनी के लिए अधिग्रहित जमीन का उचित मुआवजा लेने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते हुए परिवार के तीन सदस्य दुनिया छोड़ गए। उनके हक में हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया, लेकिन पूर्ण इंसाफ नसीब नहीं हुआ। इस परिवार का चौथा सदस्य भी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में है, लेकिन कानूनी लड़ाई अभी जारी है।
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